आजमगढ़ : बेहतर जीवनशैली से अर्थराइटिस होगा रफ़्फूचक्कर : सीएमओ

• घर के बने पौष्टिक व संतुलित भोजन का करें सेवन
• शारीरिक रूप से रहें सक्रिय, सुबह टहलें और करें व्यायाम
आजमगढ़, 15 मार्च 2022
स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर अर्थराइटिस से बचा जा सकता है। इससे ग्रसित होने पर तुरंत जांच और समय रहते उपचार कराने से आप सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते हैं। यह कहना है मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आईएन तिवारी का।
डॉ तिवारी ने बताया कि जिला मंडलीय चिकित्सालय में चार अस्थि रोग विशेषज्ञों की ओपीडी होती है। एक डाक्टर की ओपीडी में 140 से 150 मरीज आते हैं। जिसमें 10 फीसदी से लेकर 20 फीसदी तक अर्थराइटिस के मरीज होते हैं। इस क्रम में जनवरी में 3276, फरवरी में 2648 तथा मार्च में अब तक 1409 मरीजों की ओपीडी की गई है।
उन्होने बताया कि अर्थराइटिस (गठिया) सबसे सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। इस बीमारी के प्रति लोगों में उतनी जागरूकता नहीं है, जितनी हृदय रोगों या डायबिटीज़ को लेकर है। लोगों को अर्थराइटिस के बारे में जागरुक करने, बचाव और उपचार के बारे में विशेषज्ञों द्वारा बताया जाता है। अर्थराइटिस जोडों से संबन्धित एक स्वास्थ्य समस्या है। अर्थराइटिस किसी को किसी भी उम्र में हो सकता है। इसमें जोड़ों में सूजन आ जाती है, तेज दर्द व जलन के साथ उसे घुमाने में भी तकलीफ होती है। इस प्रकार की समस्या होने पर तुरंत किसी चिकित्सक से परामर्श लेकर इलाज करना चाहिए।
जिला मंडलीय चिकित्सालय में तैनात वरिष्ठ परामर्शदाता, सर्जन एवं अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ वीके श्रीवास्तव ने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ भी गठिया प्रभावित करता है, और इसके मामले अधिक आते हैं। बदली जीवनशैली, खान-पान की गलत आदतें तथा शारीरिक सक्रियता की कमी के करण युवा भी तेजी से इसके शिकार हो रहे हैं। इसे आस्टियो अर्थराइटिस कहते हैं। इसके मामले सर्वाधिक होते हैं। यह तब होता है ,जब हड्डियों का सुरक्षात्मक आवरण जिसे कार्टिलेज कहते हैं, क्षतिग्रस्त हो जाता है। इस तरह की समस्या होने पर, तुरंत चिकित्सीय परामर्श, दर्द निवारक दवाएं और फीजिओथेरेपी से कार्टिलेज को घिसने से रोका और बचाया जा सकता है। दूसरा यूरिक एसिड बढ़ जाने से समस्या को गाउट कहते हैं। इसमें ज़्यादातर दर्द की शुरुआत पैर के अंगूठे या कमर से शुरू होती है। ऐसे में तुरंत चिकित्सक को दिखाएँ तथा रक्त की जांच कराएं। इसमें प्रोटीन और खान-पान में परहेज करना होता है।
तीसरा आनुवांशिक गठिया भी होता है यह जन्म से और पारिवारिक हिस्ट्री पर आधारित होता है। इसे रूमैटाइड अर्थराइटिस कहा जाता है। इसके कारण मांसपेशियाँ और लिगामेंट्स भी क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। शुरुआती दौर में यह शरीर के छोटे जोड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन बाद में बड़े जोड़ जैसे कंधे, कूल्हे और घुटने भी इससे प्रभावित हो जाते हैं। अगर सतर्क नहीं हुये तो रूमैटाइड अर्थराइटिस स्थायी दिव्यांगता का कारण भी बन सकता है। इसमें भी चिकित्सीय सलाह लेकर तुरंत उपचार कराना चाहिए। अगर इसमें परामर्श लेकर उपचार नहीं किया तो कार्टिलेज पर प्रभाव का खतरा बना रहता है। अगर बुखार आने के दो हफ्ते या उसके बाद जोड़ों में दर्द, सूजन या समस्या हो तो तो तुरंत चिकित्सक को दिखाकर इलाज करायें।
प्रमुख लक्षण-
1- जोड़ों का कड़ा और कमजोर होना।
2- जोड़ों को घुमाने में परेशानी होना।
3- जोड़ों में दर्द सूजन और जलन होना।
4- सुबह उठने पर तेज दर्द महसूस होना।
5- सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने और नीचे फर्श पर बैठने में परेशानी होना।
6- हड्डियों के चटकने की आवाज आना।
बचाने के उपाय-
1- संतुलित, पोषक और घर के बने पौष्टिक खाने का सेवन करना।
2- खान-पान में फलों, सब्जियों और साबूत/अंकुरित अनाज को शामिल करना।
3- शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, सुबह टहलना और व्यायाम करना।
4- सुबह के समय 30 मिनट तक धूप में रहना।

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