लखनऊ। अपराध ने भले ही उन्हें कारागार में पहुंचा दिया, लेकिन अब सलाखों के पीछे रहकर भी अपना फर्ज निभाने की कोशिश कर रहे हैं। जेल में जीतोड़ मेहनत से होने वाली कमाई से कोई अपना घर चला रहा है तो कोई बूढ़े मां-बाप की दवा का जुगाड़ कर रहा हैं। कुछ ऐसे भी बंदी हैं, जिन्होंने जेल में हुई कमाई से ही बेटी के हाथ पीले कर दिए। ये बानगी मुरादाबाद जेल और लखनऊ की आदर्श कारागार की ही नहीं बल्कि प्रदेश की अधिकतर जेलों के कैदियों की है। ये कैदी खुद अपने जुर्म की सजा काटते हुए भी परिवार को मुश्किलों से दूर रखने की कोशिश कर रहे हैं।
मुरादाबाद के वरिष्ठ जेल अधीक्षक ड़ॉ. वीरेश राज शर्मा बताते हैं कि प्रदेश की जेलों के बंदियों को तीन श्रेणियों में पारिश्रमिक दिया जाता है। कुशल श्रमिक को 40 रुपये प्रतिदिन, अर्धकुशल 30 रुपये और नए बंदियों को 25 रुपये। बंदियों के पारिश्रमिक का भुगतान रिहाई के समय चेक से दिया जाता है लेकिन अगर कोई बंदी बीच में अपने पारिश्रमिक का भुगतान परिवार को भिजवाना चाहे तो पारिश्रमिक घर वालों तक चेक के जरिए पहुंचाया जाता है। वे बताते हैं कि कैद में रहकर भी कई ऐसे कैदी हैं जो अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों को हर हाल में पूरा करना चाहते हैं।
बरेली सेंट्रल जेल में 156 ऐसे कैदी हैं, जो हर साल 80 हजार से सवा लाख रुपए तक अपने परिवार को सालाना भेजते हैं। प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद कैदी जेल में किए काम की आमदनी प्रति माह अपने घर भेज रहे हैं। मेरठ के चौधरी चरण सिंह जिला कारागार से भी हर महीने करीब ढाई लाख रुपए कैदियों को पारिश्रमिक के रूप में दिए जाते हैं। गोरखपुर जेल से प्रत्येक महीने में 1 लाख 85 हजार 845 रुपये कैदियों को पारिश्रमिक के रूप में दिए जाते हैं।
यहां भी शेषनाथ उर्फ दाढ़ी ने सर्वाधिक 6 लाख रुपये जेल में रहकर कमाया। वह 1987 से ही जेल में बंद था, हाल में रिहा हुआ है। जेल की अपनी कमाई से शेषनाथ ने बेटी की शादी के साथ बच्चों की पढ़ाई में भी कुछ पैसा खर्च किया। आगरा सेंट्रल जेल के चार बंदियों ने हथकरघा केंद्र से जुड़कर तीन साल में करीब दो लाख रुपये पारिश्रमिक से कमाए हैं। अलीगढ़ जेल में बंद दीपक ने अपने परिश्रम से 1.42 लाख रुपये की कमाई की है। इसके अलावा धर्मेंद्र ने 52 हजार, राहुल ने 50 हजार और राजेश ने 36 हजार कमाए। वाराणसी जेल में भी हर माह कैदियों को 50 से 60 हजार रुपये को कानपुर जेल में 317 बंदियों को हर माह करीब डेढ़ लाख रुपये का पारिश्रमिक दिया जा रहा है।
जेल प्रभारी अधीक्षक सीपी त्रिपाठी के मुताबिक 1949 में तत्कालीन सीएम डॉ. सम्पूर्णानंद ने आदर्श जेल स्थापित की। सेंट्रल जेलों में बन्द अच्छे आचरण वाले कैदी यहां आते हैं। 1956 से हर साल एक माह गृह अवकाश मिलता है। इसमें कैदी परिवार बसाने, बच्चों की शादी समेत दूसरे जरूरी काम करते हैं। कारागार विभाग के डीजी आनन्द कुमार के मुताबिक, 89 कैदी 407 रुपये दिहाड़ी पर गन्ना अनुसंधान संस्थान में काम करते हैं। 50 कैदी बाहर जनरल स्टोर, साइकिल, सब्जी, ढाबा दुकानें चला रहे हैं। 80 कैदी मशरूम उत्पादन और बेकरी का काम करते हैं। 15 कैदी गौशाला और दूध वितरण से अजीविका कमा रहे। 10 कैदी सिलाई केंद्र, 20 कैदी प्रिंटिंग प्रेस में काम करते हैं। 30 कैदी उत्पादों की पैकिंग, बाकी दूसरे दैनिक काम करते हैं। आदर्श कारागार के कैदियों को बाहर काम करने, दुकान चलाने की छूट है। यहां कमाई कर वे परिवार की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। इनकी आय बढ़ाने के लिए जेलों में उद्योगों के लिए बजट दिया गया है।