आजमगढ़। पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव ने छात्र जीवन से ही समाज के लिए वफादार रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय में शिक्षा के दौरान 1953 में उन्होंने सर्वहारा समाज की समस्याएं उठाईं तो अन्य छात्रों के साथ उनको निष्कासित कर दिया गया। उसके बाद भूख हड़ताल पर बैठे, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के हस्तक्षेप पर निष्कासन वापस हुआ था। जिले के सरूपहां गांव में एक जनवरी 1930 को जन्मे चंद्रजीत यादव का अपनी माटी के प्रति प्रेम का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 25 मई 2007 को दिल्ली में देहावसान के बाद उनका अंतिम संस्कार तमसा नदी के राजघाट पर किया गया।
राजनीति का लंबा सफर तय करने और धमक रखने के बाद भी उन्होंने कभी अपने इकलौते बेटे के लिए टिकट नहीं मांगा। उनके लिए समाज ही असली परिवार था और अंतिम सांस तक समाज के हित के प्रति सोचते रहे। चंद्रजीत यादव ने शिक्षा पूर्ण करने के बाद आजीविका के लिए 1954 में वकालत शुरू किया। 1957 में देश के सबसे कम आयु के विधायक बने। यह क्रम 1962 में भी बना रहा। उसके बाद 1967, 1971, 197, 1980, 1991 में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। लोकसभा में हर विषय पर हस्तक्षेप करते हुए प्रगतिवादी दिशा देते रहे। वह सांप्रदायिक एकता, सद्भाव के प्रबल समर्थक थे। कहीं भी सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ता, तो बहुत दुखी होते थे और तत्काल वहां पहुंचकर सद्भाव बहाल करने में जुट जाते थे। समाज सुधार के लिए बाबा साहब डा. भीम राव आंबेडकर से प्रभावित रहे, लेकिन कई मामलों में गांधीजी से भी सहमत रहे। समता पर आधारित नई सामाजिक व्यवस्था की स्थापना उनका सपना था।
विश्व शान्ति परिषद के महत्वपूर्ण स्थापित व्यक्तित्व वाले चन्द्रजीत यादव ने अनेक बार राष्ट्रों के बीच के विवादों को समाप्त कर विश्व में शान्ति बहाल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। यही नहीं, मित्र राष्ट्रों के अपने अन्दरूनी मामलों के चलते भड़की हिंसा के समय भी, उनके निमत्रण पर स्व0 यादव साहब को जाना पड़ता था और शान्ति बहाल करने में मध्यस्थता करनी पड़ी। इसी क्रम में जनवरी सन् 1974 में स्व0 चन्द्रजीत यादव ने यू0एस0एस0आर0 (रूस) गये हुए थे तब वहाँ ‘‘ग्लासनोस्त और पेरेस्त्राइका’’ की बौद्धिक चर्चा का मसौदा तैयार हो चुका था, अभी बहस शुरू नहीं हुई थी। वहाँ आणविक शस्त्रों के भण्डारण तथा वीपन्स ऑफ मास डिस्ट्रीब्यूशन के विरोध पर केन्द्रित विश्व स्तरीय आयोजित बहस में उन्हें आमन्त्रित किया गया था। आणविक अस्त्रों के इस्तेमाल के विरोध में उन्होंने अपने तर्कों से दुनिया को खड़ा कर दिया।
विश्व में उच्च राजनीतिक शिखर पर पहुंचने के बाद भी, किसान, खेत-खलिहान, हल-बैल के साथ किसान की समस्या पर बहस करते रहते थे। 19 अप्रैल 1982 को संसद में उन्होने बहस में भाग लेते हुए कहा था ‘‘90 प्रतिशत किसान कर्ज में डूबा हुआ है। वह आत्म हत्या कर रहा है। भारत की अर्थ व्यवस्था की रीढ़ खेती है। सरकार गम्भीर नहीं है। लाभकारी दाम के लिए किसान को आन्दोलन करना पड़ा उन्होने पूछा, किसान को लाभकारी दाम के लिए आन्दोलन क्यों करना पड़ता है? सरकार से उन्होने पूछा, सरकार एक भी उदाहरण बता दे कि उद्योगपति को अपने उत्पाद का दाम बढ़ाने के लिए कोई आन्दोलन करना पड़ा? सरकार चुप रहती है। जनता तबाह होती है। जब किसान विरोधी कानून के विरूद्ध किसान आन्दोलन चला रहा था, तब यहाँ चन्द्रजीत यादव प्रासंगिक दिखाई देते हैं। किसानों को देश द्रोही करार दे रहे हैं। लोकतंत्र की मजबूती के लिए, चन्द्रजीत यादव के अनुसार लोकतांत्रिक तरीके से वार्ताकर समस्या का समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिए।