16 साल से खाली थी कोख, जब आई खुशी तो थमीं मां व गर्भ में पल रहे जुड़वा बच्चों की सांसें

गोरखपुर। बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में डाक्टरों की लापरवाही से सिर्फ एक महिला की ही मौत नहीं हुई. गर्भ में पल रहे दो बच्चे भी मां की थमती धड़कन के साथ दुनिया में आने से पहले चले गए. जब मां की सांसें थम रही थीं तो दोनों की भी बेचैनी बढ़ी होगी. वह भी मां के कोमल स्पर्श को महसूस करना चाह रहे होंगे लेकिन उन्हें क्या पता कि चंद लोगों की लापरवाही उनकी प्यारी मां को मौत के आगोश में ढकेल रही थी. साथ ही उस सपने का भी अंत हो रहा था जो 16 साल से बांझ होने का अपयश झेल रही चंद्रा त्रिपाठी को इठला रहा था. चंद्रा तिल-तिलकर मरती रही, सांसें उखड़ी रहीं, बेबस पति संदीप त्रिपाठी रोकर सफेद कोट के सामने गुहार लगाता रहा पर किसी को फर्क ही नहीं पड़ा. फर्क भी कैसे पड़ता, कहावत जो है, मोटी खाल में सिहरन नहीं होती.

दरअसल, सिद्धार्थनगर के खेसरहा थाना अंतर्गत बेलहरा निवासी संदीप उस घड़ी को कोस रहे हैं जब उन्होंने पत्नी को मेडिकल कॉलेज ले जाने का निर्णय लिया था. शुक्रवार सुबह पत्नी को दर्द और सांस लेने में दिक्कत महसूस हुई तो वह एंबुलेंस बुलाकर सिद्धार्थनगर जिला अस्पताल पहुंचे. वहां डॉक्टरों ने मेडिकल कॉलेज ले जाने की सलाह दी. बताया कि मेडिकल कॉलेज में हृदय के डाक्टर आ गए हैं. सुबह ही वह मेडिकल कॉलेज आ गए और ओपीडी की लाइन में लगकर आठ बजे पर्ची बनवाया और हृदय रोग पहुंचे. यहां बताया गया कि विभाग में रोगी भर्ती नहीं होते मेडिसिन विभाग ले जाओ. पत्नी को लेकर वह मेडिसिन विभाग भागे तो वहां बताया कि मामला हृदय रोग विभाग का है. संदीप पत्नी को लेकर स्त्री रोग विभाग पहुंचे. आरोप है कि यहां से फिर मेडिसिन विभाग भेज दिया गया. चंदा लगातार सांस न लेने की शिकायत करती रही पर डॉक्टर उसकी सुनने को तैयार नहीं थे. परेशान संदीप पत्नी को ढांढस बंधा रहे थे. आंखों से पानी गिरता जा रहा था पर सब बेपरवाह थे.

संदीप की चंदा से शादी वर्ष 2006 में हुई थी. बच्चे नहीं हुए तो आइवीएफ विधि का सहारा लिया. आठ-नौ लाख रुपये खर्च हुई. स्टेट बैंक आफ इंडिया के ग्राहक सेवा केंद्र संचालक संदीप आर्थिक तंगी में पहुंच गए लेकिन मां बनने की पत्नी के चेहरे की खुशी ने परेशानी को किनारे कर दिया. संदीप कहते हैं कि, दो महीने बाद जुड़वा बच्चों के आंगन में आने की उम्मीद में पत्नी चंपा बहुत उत्साहित रहती थीं. 40 वर्ष की उम्र में भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली थी लेकिन डॉक्टर मेरे साथ इतना बुरा करेंगे, कभी जीवन में नहीं सोचा था. चंपा की मौत की खबर समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई तो कार्यवाहक प्रधानाचार्य डा. पवन प्रधान, मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डा. महीम मित्तल और नेहरू अस्पताल के प्रमुख अधीक्षक डा. राजेश राय ने वार्डों का निरीक्षण कर व्यवस्था देखी. खामियां मिलने पर जिम्मेदारों को फटकार भी लगाई लेकिन जिनकी लापरवाही से तीन मौतें हुईं उनके खिलाफ कुछ नहीं किया. बल्कि कहा कि महिला का मेडिसिन विभाग में इलाज चल रहा था. उसकी हालत गंभीर थी. जांच कमेटी बनाई जाएगी. यदि किसी की लापरवाही मिली तो स्पष्टीकरण मांगा जाएगा.