लखनऊ। लोक सभा चुनाव के पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली और अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में दखल रखने वाले इमरान मसूद को साथ लेकर मायावती एक बार फिर मुस्लिम समाज में बसपा की पैठ बनाने में जुट गईं हैं. मायावती की कोशिश है कि सपा के और भी मुस्लिम नेताओं को हाथी पर सवार कर लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरें ताकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव जैसी नौबत पार्टी के सामने फिर न आए.
पिछले लोकसभा चुनाव की तरह सपा से गठबंधन न होने पर भी दलित-मुस्लिम के मजबूत गठजोड़ के जरिए अकेले ही पार्टी बेहतर प्रदर्शन करने में कामयाब हो. दरअसल, छह माह पहले के विधानसभा चुनाव में बसपा 19 से सिर्फ एक सीट और 13 प्रतिशत वोट बैंक पर ही सिमट कर रह गई थी. इस बीच वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के 10 सांसद तब जीते थे जब सपा से गठबंधन था. उससे पहले वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी शून्य पर पहुंच गई थी. विधानसभा चुनाव में बसपा के शर्मनाक प्रदर्शन के पीछे का एक बड़ा कारण मुस्लिमों का एकतरफा समाजवादी पार्टी को वोट देना माना गया.
मुस्लिमों को 89 टिकट देने के बाद भी उनमें कोई नहीं जीता. दलित समाज भी पहले जैसा मायावती के साथ नहीं खड़ा हुआ. विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के जरिए भाजपा भी दलित वोट बैंक में गहरी सेंध लगाने में कामयाब रही. अब लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मायावती एक साथ कई मोर्चे पर काम कर रही हैं. संगठन को नए सिरे से खड़ा करने के साथ ही खासतौर से दलितों को फिर पार्टी से जोड़ने को सदस्यता अभियान चलाया जा रहा है. सिर्फ दलितों के दम पर बेहतर नतीजे नहीं हासिल किए जा सकते इसलिए विधानसभा चुनाव में लगे झटके के बाद से ही बसपा प्रमुख मुस्लिम समाज को भी फिर पार्टी से जोड़ने की कोशिश में जुटी हैं.
आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव में मायावती ने मुस्लिम समाज के शाह आलम उर्फ गुड्डी जमाली पर दांव लगाया. जमाली जीते तो नही लेकिन 30 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रहे. इससे उत्साहित मायावती की आए दिन ट्वीट के जरिए मुस्लिम समाज को यही बताने की कोशिश रहती हैं कि विधानसभा चुनाव में सपा पर भरोसा करके उसने बड़ी भारी भूल की है. कहती हैं कि सपा मुखिया यूपी में मुस्लिमों का पूरा वोट लेकर भी सीएम नहीं बन पाएं. बसपा प्रमुख ने जेल में बंद रहे आजम खान के प्रति सहानुभूति दिखाते हुए भी ट्वीट किया था जिसके पीछे भी मुस्लिमों को अपने पाले में लाने का संदेश था.
अब इमरान मसूद को हाथी पर सवार कर मायावती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद का खेल बिगाड़ने की कोशिश की है. बसपा नेताओं का मानना है कि जिस तरह से सपा व दूसरे दल के मुस्लिम नेता हमसे जुड़ रहे हैं उससे साफ है कि मुस्लिम समाज का सपा से मोह भंग होने लगा है. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मवीर चौधरी के मुताबिक सपा सहित दूसरे दलों के कई और नेता भी बसपा में शामिल होना चाहते हैं. बहन जी (मायावती) उन्हीं को पार्टी में लेंगी जो अच्छी नीयत व पूरी दमदारी से काम करने के वादे के साथ बसपा में आने को तैयार होंगे. चौधरी बताते हैं कि सपा को वोट देकर ठगा सा महसूस कर रहा मुस्लिम समाज अब समझ चुका है कि सपा को वोट देने से उनकी सरकार कभी नहीं बनने वाली है जबकि दलित के साथ मुस्लिम के आने पर बसपा वर्ष 2007 में सरकार बना चुकी है.