कानपुर देहात। ब्रह्मलीन शोभन सरकार श्री 1008 स्वामी विरक्तानंद जी महाराज को 11 वर्ष की आयु में वैराग्य हो गया था। उपनयन संस्कार में मां से भिक्षा लेने की रस्म के बाद वह घर त्याग कर जंगल चले गए और बाघपुर के पास पांडु नदी किनारे तपस्या में लीन हो गए। यहीं पर उनकी भेंट योगेश्वर महाराज से हुई और उन्होंने शोभन आश्रम के महंत स्वामी श्री रघुनंदन दासजी महाराज को गुरु मान लिया था।
महंत स्वामी श्री रघुनंदन दासजी महाराज ने रखी थी आधारशिला
वर्ष 1940 में महंत स्वामी श्री रघुनंदन दास जी महाराज ने शोभन गांव के पास आश्रम की आधार शिला रखी थी। उस समय शिवली के शुक्लन पुरवा गांव में पं. कैलाश नाथ तिवारी के घर जन्मे शोभन सरकार अपने गुरु भाई स्वामी योगेश्वर महाराज के साथ रात्रि के समय शोभन आश्रम दर्शन करने जाया करते थे। वर्ष 1962 में शोभन आश्रम के महंत श्री स्वामी रघुनंदन दासजी महाराज के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनके ममेरे भाई सोनेलाल जी महाराज आश्रम की देखरेख करने लगे।
वर्ष 1974 में संभाली थी आश्रम की बागडोर
शोभन गांव के बुजुर्गों की विनती पर वर्ष 1974 में श्री 1008 स्वामी विरक्तानंद जी महाराज ने शोभन आश्रम की बागडोर संभाली थी। इसके बाद भक्तों में शोभन सरकार के नाम से विख्यात हुए। उन्होंने चौबेपुर में गंगा नदी किनारे हनुमान मंदिर, बक्सर उन्नाव में चंद्रिका माता मंदिर व आश्रम, सेन गांव में हनुमान मंदिर व आश्रम, रंजीतपुर में पवन तनय आश्रम, नहरीबरी में हनुमान मंदिर व आश्रम, चित्रकूट में हनुमान मंदिर व आश्रम, उज्जैन में हनुमान मंदिर की स्थापना कराई थी।
गंगा की गोद में जलसमाधि
समूचे उत्तर भारत में तीर्थस्थल के तौर पर विख्यात शोभन आश्रम के महंत 1008 स्वामी विरक्तानंद जी महाराज बुधवार भोर करीब पांच बजे ब्रह्मलीन हो गए। जानकारी मिलते ही भक्तों में शोक की लहर दौड़ गई और अंतिम दर्शन के लिए आश्रम में तांता लग गया। उन्हें एक हफ्ते से बुखार था और आश्रम के अस्पताल में इलाज चल रहा था। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार आश्रम के वैदेही भवन से पार्थिव शरीर चौबेपुर के गंगा तट किनारे सुनौढ़ा आश्रम ले जाया गया और मां गंगा की गोद में जलसमाधि दी गई। यहां पर भी अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्त मौजूद रहे।