रांची। बेशक पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के समय में मोमेंटम झारखंड हुआ था, बेशक उस पर मौजदा गठबंधन सरकार कई सवाल उठा चुकी है, फिर भी यह एक मौका है, जब राज्य सरकार को उस समय हुए समझौतों की फाइल को एक बार फिर से खंगालना चाहिए। कंपनियों ने लाखों करोड़ निवेश का प्रस्ताव दिया था। कुछ कंपनियां स्थापित हो चुकी हैं, लेकिन अब असमंजस इस बात को लेकर है कि मौजूदा सरकार उन समझौतों पर बढ़ेगी अथवा नहीं
वक्त का तकाजा यह है कि जब देश आत्मनिर्भरता की बात कर रहा है तो क्यों न झारखंड भी इस दिशा में आगे बढ़े और देश-दुनिया की कंपनियों के लिए रेड कारपेट बिछाए। मोमेंटम झारखंड में जापान राज्य का कंट्री पार्टनर रह चुका है। झारखंड के कई इलाकों से जापान रूबरू भी है, और जापान की एक बड़ी स्टील कंपनी टाटा स्टील के पार्टनर के तौर पर काम भी कर रही है। इसके अलावा जापान एक्सटर्नल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (जेट्रो) के प्रतिनिधि भी झारखंड के विभिन्न इलाकों का भ्रमण कर चुके हैं।
अब राज्य को इस मौके को भुनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोडऩी चाहिए। कोरोना संकट को लेकर पूरी दुनिया में चीन विरोधी माहौल बना हुआ है। जापान ने तो चीन से अपनी कंपनियों को निकालने के लिए बड़ा आॢथक पैकेज भी घोषित कर दिया है। देश के कई राज्य जापान सहित चीन से निकलने वाली अन्य कंपनियों के पलक-पांवड़े बिछाए हुए हैं। उत्तर-प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश सहित कुछ अन्य राज्य श्रम कानूनों में ढील दे चुके हैं। कई राज्य सीधे कंपनियों से भी संपर्क कर रहे हैं। झारखंड में रघुवर सरकार के समय में आयोजित ‘मोमेंटम झारखंड’ के समय की गई कसरतें इसमें सहायक साबित हो सकती हैं।
पार्टनर राष्ट्रों की सुध लेने का समय
जापान, मंगोलिया, चेक गणराज्य तथा ट्यूनीशिया जैसे राष्ट्रों ने झारखंड के साथ पार्टनरशिप कर मोमेंटम झारखंड में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। ये झारखंड में निवेश के अवसर भी तलाश रहे थे। इन राष्ट्रों से जुड़ी कंपनियों को यहां बुलाने की संभावनाओं को तलाशा जाए तो निश्चित तौर पर प्रदेश का आॢथक माहौल बदलेगा। इसके अलावा एक दर्जन से अधिक देशों से संपर्क किया गया था और कई देशों के प्रतिनिधि भी पहुंचे थे। इन देशों से निवेशक ढूंढने का सिलसिला बढ़ाते हुए सकारात्मक प्रयास करने होंगे।
प्रशिक्षित श्रमिकों की संख्या अधिक
विभिन्न राज्यों से झारखंड लौटनेवाले लोगों में सर्वाधिक संख्या प्रशिक्षित श्रमिकों की है। इन्हेंं रोजगार के अवसर प्रदान किए जाएं तो सरकार के सामने से दो बड़ी परेशानी कम हो जाएगी। पहली परेशानी सबको रोजगार मुहैया कराने की है। विदेशी कंपनियों को भी बैठे-बिठाए प्रशिक्षित श्रमिक मिल जाएंगे। दूसरी परेशानी झारखंड में उपलब्ध कृषि उत्पादों को बड़ा वैश्विक बाजार मुहैया कराने की है।
इसकी एक झलक पिछले वर्ष दिखी, जब खूंटी और आसपास के इलाकों से कटहल विश्व के कोने-कोने में पहुंचना शुरू हुआ। अभी भी टमाटर, शिमला मिर्च, फ्रेंच बीन आदि कई ऐसी सब्जियां हैं जो झारखंड में बहुतायत में उपलब्ध हैं और कई बार इन सब्जियों को बाजार नहीं मिलने के कारण किसान सड़कों पर फेंक देते हैं। फूड प्रोसेसिंग और कृषि क्षेत्र में जापान की कई कंपनियां विश्व में अग्रणी हैं।
जमीन की नहीं है कमी
झारखंड के आदित्यपुर, रांची और बोकारो औद्योगिक क्षेत्रों में कई कंपनियां बंद हैं। इन बंद कंपनियों की जमीन नई कंपनियों को आवंटित की जा सकती है। इसके अलावा राज्य सरकार पहले ही नीति बना चुकी है कि अधिक लोगों को रोजगार देनेवाली कंपनियों को कम कीमत पर जमीन दी जाएगी। प्रदेश में बीपीओ को बुलाने के लिए भी नीति में संशोधन किया गया था, जिसका लाभ लेने का वक्त अभी आ गया है।
ये था रोडमैप
मोमेंटम झारखंड में 210 कंपनियों से 3.11 लाख करोड़ का निवेश का एमओयू, दो लाख लोगों को रोजगार देने का था दावा
उपलब्धि : 504 परियोजनाएं धरातल पर उतरीं, 50 हजार करोड़ निवेश, 72000 रोजगार। बड़े निवेशक दूर रहे।
पार्टनर देश : जापान, मंगोलिया, चेक गणराज्य तथा ट्यूनीशिया।
इन देशों के प्रतिनिधियों को भेजा गया था निमंत्रण
चीन, यूएसए, यूनाइटेड किंगडम, चेक गणराज्य, नाइजीरिया, रूस, सिंगापुर, कोरिया, सउदी अरब, इटली, ओमान, स्वीडन, संयुक्त अरब अमीरात, वेनेजुएला, रिपब्लिक आफ ट्यूनीशिया, मंगोलिया, सूडान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, गुएना-बिसाउ, नेपाल, पाकिस्तान तथा जांबिया।