प्रवासी मजदूर बोले, खेती-मजदूरी करेंगे पर परदेश नहीं जाएंगे; घर-गांव में ही रहना बेहतर

कैरो (लोहरदगा)। रोजगार और दो वक्त की रोटी के लिए दूसरे प्रदेशों की खाक छानने वाले मजदूर काफी परेशानी और लंबे इंतजार के बाद अपने गांव-अपने घर लाैट पाए। इस इंतजार और परेशानियों ने उन्हें अपने गांव की मिट्टी की कीमत का अहसास करा दिया। प्रवासी मजदूरों ने कहा कि अब अपने गांव में खेती और मजदूरी कर लेंगे, परंतु दूसरे प्रदेश में काम करने नहीं जाएंगे। गांव में सरकार रोजगार के साधन उपलब्ध करा दे तो उन्हें दूसरे प्रदेशाें में जाने की जरूरत ही क्या है। वह खेती और अपनी परंपरागत व्यवसाय को अपना कर अपने परिवार के साथ रहना चाहते हैं।

‘प्रदेश अब किसी भी कीमत से नहीं जाएंगे। इसके लिए एक शाम भूखा रहना पड़े तो भी रह लेंगे। गांव में खेती-बारी कर परिवार की जीविका चलाएंगे। मनरेगा या दूसरे लोगों के घर में मजदूरी का काम करेंगे। लेकिन अब भूलकर भी प्रदेश नहीं जाएंगे। बाहर में बहुत तकलीफ है। बाल-बच्चा को छोड़कर अब कहीं नहीं जाएंगे।’ -प्रेम कुमार साहू, प्रवासी मजदूर, हनहट, कैरो।

‘झारखंड में काफी कम मजदूरी मिलती है। जिसके कारण लोग दूसरे प्रदेश कमाने के लिए चले जाते हैं। अगर यहां नियमित काम मिले तो किसी को बाहर जाने का शौक नहीं है। अब चाहे कुछ भी हो अपने परिवार के साथ मे रहकर काम करेंगे।’ -प्रह्लाद महली, प्रवासी मजदूर, हनहट, कैरो।

‘कोरोना ने अपने गांव में जीना सीखा दिया। अब पता चला कि मौत की कोई कीमत नहीं है। परिवार के साथ रहकर नमक-रोटी ही खाएंगे। लेकिन दूसरे प्रदेश कमाने नहीं जाएंगे। सरकार को चाहिए नियमित रूप से अपने ही राज्य में रोजगार दे। ताकि किसी भी मजदूर को दूसरे प्रदेश नहीं जाना पड़े।’ -बाबूलाल उरांव, प्रवासी मजदूर, हनहट, कैरो।

‘झारखंड सरकार अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराए। ताकि गरीब मजदूर अपने परिवार के साथ रहकर जीवन-यापन कर सके। कोरोना जैसे वैश्विक महामारी ने बता दिया कि पैसे की कोई कीमत नहीं है। परिवार व अपना गांव सबसे बड़ी चीज है। ओडि़शा से जब पैदल चल रहे थे तो लग रहा था कि अब जीवन में ऐसी गलती नहीं करेंगे। गांव में ही मजदूरी कर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करेंगे।’ -भागीरथ साहू, प्रवासी मजदूर, हनहट, कैरो।