दिल्ली : 25 जून तक यूपी पहुंच सकता है मानसून: पहले अल नीनो, अब बिपरजॉय ने रोकी रफ्तार

25 जून तक यूपी पहुंच सकता है मानसून: पहले अल नीनो, अब बिपरजॉय ने रोकी रफ्तार; पूर्वी बिहार से आगे पश्चिम की ओर बढ़ रहा हैं

यूपी में इस बार 25 से 28 जून के बीच मानसून पहुंच सकता है। आमतौर पर इसे 19 जून तक आ जाना चाहिए था। लेकिन बिपरजॉय चक्रवात ने मानसून की गति पर स्टॉप लगा दिया। इस वजह से मानसून 5 से 8 दिन लेट हो गया है। 5 दिन से मानसून पूर्वी बिहार के इलाके में ही फंसा हुआ था। अब बिहार से आगे पश्चिम की ओर बढ़ रहा है।

दरअसल, प्रशांत महासागर में उठे अलनीनो की वजह से मानसून 7 दिन पहले ही लेट था। फिर बिपरजॉय आ गया। इस वजह से उत्तर प्रदेश समेत पूरे उत्तर भारत में मानसून 10 दिन देरी से आ रहा है।

मानसून और बिपरजॉय के असर को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के मौसम और कृषि वैज्ञानिकों से बातचीत पढ़िए…

पहले उन कंडीशन को जान लेते हैं, जो कि उत्तर भारत के मौसम को मानसून से दूर लेकर गए…

दिन का तापमान सामान्य से 5-6 डिग्री ज्यादा और रात का तापमान 3-4 डिग्री ज्यादा चल रहा है।

नमी महज 30-45% पर सिमट गई है। इससे बारिश के लोकल कंडीशन भी नहीं तैयार हो पा रही है।

जून के पहले सप्ताह के बाद हीटवेव बंद हो जाते थे, मगर अभी रोजाना हीट वेव चल रहा है। इसका अर्थ है कि मानसून अभी लेट होगा।

प्री-मानसून की बारिश भी नहीं आई। जून के मध्य में अधिकतम तापमान 47 डिग्री से भी ऊपर जा रहा है।
पुरवा हवा काफी समय तक रुकी है।

दिल्ली-एनसीआर तक बिपरजॉय का दबाव बढ़ गया। जो मानसूनी हवा का रास्ता रोक रहे थे।

आइए, अब जानते हैं क्या कहते हैं बीएचयू के वैज्ञानिक…

इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट (IMD) के आंकड़ों को देखने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के मौसम वैज्ञानिकों ने अपना मत दिया है। BHU के मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर मनोज कुमार श्रीवास्तव ने कहा, “मानसून लेट होने के साथ ही इस बार बारिश के 10 दिन घट भी सकते हैं। क्योंकि, बिपरजॉय चक्रवात ने मानसून की गति पर ब्रेक लगा दिया है।”

वहीं, इस चक्रवात ने अरब सागर की नमी भी पूरी खींच ली है। मानसून के बादल पूर्वी बिहार यानी कि पूर्णिया, भागलपुर आदि जगहों पर 4-5 दिन से जमकर बरसात करा रहे हैं। पुरवा हवा भी अभी तक एक्टिव नहीं थी, जिससे कि बादल उत्तर भारत की ओर आए। इस स्थिति में मानसून के देर होने की उम्मीद काफी ज्यादा है।”

पूर्वी बिहार में अटका है मानसून

प्रो. श्रीवास्तव ने कहा, “आधा जून निकल गया, लेकिन अभी तक प्री-मानसून की भी बारिश नहीं हुई। पहले अलनीनो और अब बिपरजॉय, यह संकेत ठीक नहीं है। हालांकि, मानसून की शुरुआत ताबड़तोड़ नहीं बल्कि, हल्की-फुल्की बारिश से होगी।”

1 जून के बजाय 8 जून को आया मानसून

उन्होंने कहा, ”हिंद महासागर की ओर से नमी लेकर आने वाला दक्षिण पश्चिमी मानसून अमूमन 1 जून तक केरल के तट पर दस्तक दे देता था। इस बार इसने 8 जून को दस्तक दिया। मानसून की पहली शाखा यानी कि केरल वाला बादल अब वेस्ट बंगाल और नॉर्थ ईस्ट में बारिश करा रहा है।

वहीं, कनार्टक की ओर से आने वाली मानसूनी हवाओं की दूसरी शाखा अब पूर्वी बिहार तक आकर रुकी हुई है। पटना में प्री-मानूसन की बरसात शुरू हो चुकी है। लेकिन, उत्तर भारत में प्री मानसून 23 जून और मानसून के बादल पहुंचने में 7 दिन तक लग सकते हैं।”

31 साल बाद बनी ऐसी भयानक स्थिति

बीएचयू में जियो फिजिक्स डिपार्टमेंट के अध्यक्ष और मौसम पर काम करने वाले प्रोफेसर जीपी सिंह ने कहा, “अरब सागर से उठने वाली नमी भी मानसून बादलों के साथ मिलकर यूपी के इलाकों में बारिश कराती है। मगर, अरब सागर की ज्यादातर नमी बिपरजॉय चक्रवात के हिस्से में चला गया है। इसलिए अब हमें बंगाल की खाड़ी वाले मानसूनी हवाओं पर निर्भर रहना होगा। इस समय उत्तर भारत में तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है।

जून में इस तरह से हीट स्ट्रोक का पड़ना, यह बताता है कि मानसून अभी काफी दूर है। 1992 में हीट स्ट्रोक से काफी लोगों की मौत हो गई थी। इस बार भी जून में कंडीशन वैसा ही कुछ है। ग्लोबल और रीजनल पैरामीटर की वजह से केरल में मानसून 7 दिन लेट आया है। वाराणसी समेत यूपी में 15 जून तक मानसून आ जाना चाहिए था।”

30 दिन तक कमजोर रह सकता है मानसून

स्काईमेट वेदर ने शुरुआती 30 दिन तक मानसून के कमजोर रहने की उम्मीद जताई है। क्योंकि, नमी अब उतनी नहीं बची है। हालांकि, चक्रवात के असर के बाद फिर से नमी उठनी शुरू हो जाएगी। हो सकता है, मानसून के दिन बढ़ जाए।

15 दिन आगे खिसक गई धान की रोपाई

BHU में धान वैज्ञानिक प्रो. पीके सिंह ने कहा कि मानसून में देरी धान की नर्सरी सूख रही है। अब रोपाई का समय है। यह 19-25 जून तक हो जाता है। लेकिन, मानसून लेट होने से यह 30 जून या जुलाई तक खिसक सकता है।

वहीं, भीषण गर्मी की वजह से कई इलाकों में ग्राउंड वाटर इतना नहीं बचा होगा कि नलकूप से धान के खेत में पानी भर सके। जो सक्षम है उसके लिए दिक्कत नहीं, मगर छोटे और मझले किसानों के लिए यह खतरनाक है। नहरों और तालाबों में पानी नहीं बचा है।

खेतों में भरा पानी उबल रहा और धान जल रहे

दूसरी बात, नलकूप से किसान खेतों में पानी भर देते हैं। मगर, तीखी धूप और हीट वेव की वजह से दिन में पानी बिल्कुल उबाल मारने लगता है। ऐसे में धान के बेहन (अंकुरित पौधा) खराब और सूख सकते हैं। किसान रात में पानी डाले और सुबह 8-9 बजे तक उसे खेत से बाहर निकाल दें। ऐसे करके कई बार पानी बदलना होगा। गर्म पानी खेत में न रहे। देर से रोपाई पर फसल की उपज कम होगी और दाने छोटे होंगे।

अलनीनो ने भी बिगाड़ा खेल

इस साल दिसंबर में दक्षिण अमेरिकी देश इक्वाडोर और पेरू के पास प्रशांत महासागर में अलनीनो की कंडीशन बनी थी। यानी कि यहां के समुद्र में गर्म जलधाराएं चल रही थीं। मौसम विज्ञान के अनुसार, जिस साल अलनीनो की कंडीशन बनती है, उस साल भारत में मानसूनी बारिश कम होती है।

अलनीनो 10 साल में 2 या 3 बार आता है। इसका असर 8-10 महीनों तक रहता है। इस स्थिति में मानसून के 30-40% तक कमजोर होने की उम्मीद की जा रही है। हो सकता है कि मानसून आते ही तेज बारिश हो जाए, लेकिन अगस्त-सितंबर तक जाते-जाते सूखा पड़ने लगे। जबकि, राजस्थान से सितंबर तक मानसून लौटता है।

क्या है अल नीनो?

अमेरिकन जियो साइंस इंस्टीट्यूट के अनुसार, अल नीनो का संबंध प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में समय-समय पर होने वाले बदलावों से है। अल नीनो पर्यावरण की एक स्थिति है, जो प्रशांत महासागर के भूमध्य क्षेत्र में शुरू होती है। सामान्य शब्दों में कहें तो अल नीनो वह प्राकृतिक घटना है, जिसमें प्रशांत महासागर का गर्म पानी उत्तर और दक्षिण अमेरिका की ओर फैलता है और फिर इससे पूरी दुनिया में तापमान बढ़ता है। इस बदलाव के कारण समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है।

यह तापमान सामान्य से कई बार 0.5 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा हो सकता है। ये बदलाव अमूमन 9 से 12 महीने तक होते हैं। लेकिन, कई बार लंबे भी चलते हैं। अल नीनो की स्थिति हर 4 से 12 साल में आती रही है। लेकिन अब इसकी फ्रिक्वेंसी 2 से 7 साल हो गई है। हालांकि कोई भी दो अल नीनो एक के बाद एक नहीं आते हैं।

मानसून के हैं 8 मानक

BHU में जियोफिजिक्स डिपार्टमेंट के अध्यक्ष प्रो. जीपी सिंह के अनुसार, अलनीनो ओर लानीना के अलावा, साउथ वेस्ट मानसून के 8 मानक होते हैं…

पृथ्वी पर 0°C इक्वेटर लाइन के उत्तर भारत में जितनी ज्यादा ठंड होगी। तापमान जितना कम होगा, मानसून के लिए उतनी ही बेहतर कंडीशन बनती है।
उत्तर और मध्य भारत में मई महीने में न्यूनतम तापमान जितना ज्यादा होगा, मानसून उतना ही ज्यादा बारिश वाला होगा।
जनवरी से मार्च तक हिमालय पर भारी बर्फबारी स्ट्रॉन्ग मानसून का संकेत है।
दिसंबर, जनवरी और फरवरी में अरब सागर के सतह का तापमान कम हो तो मानसून अच्छा होता है।
इस क्षेत्र में वायुमंडल के 20 किमी की हाइट तक हवा का पैटर्न यानी कि पूरब से पश्चिम की ओर चलने वाली हवाओं की फ्रिक्वेंसी पर डिपेंड करता है।
दिसंबर महीने में जब यूरेशिया में बर्फबारी ज्यादा होती है तो मानसून काफी मजबूत होता है। वहां बर्फबारी के डाटा उपलब्ध नहीं हो पाए हैं।
जनवरी-अप्रैल के बीच इक्वेटर लाइन के उत्तर में लो प्रेशर कंडीशन होती हैं। तभी मानसून अच्छा बनता है।
मार्च के टाइम उत्तर भारत में न्यूनतम तापमान सामान्य से ज्यादा होना चाहिए।