प्रेस नोट
आजमगढ़ 07 मई– उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) आजमगढ़ मण्डल, आजमगढ़ ने बताया है कि खरीफ सीजन में परंपरागत कृषि विधियां तथा कतार में बुआई, फसल चक्र, सहफसली खेती, ग्रीष्मकालीन जुताई आदि कम लागत में कीटों एवं रोगों का नियंत्रण कर गुणवत्ता युक्त अधिकाधिक उत्पादन लिया जा सकता है। इन विधियों को अपनाने से पर्यावरणीय (जल, वायु एवं मृदा) प्रदूषण कम होता हैं। कीट एवं रोग नियंत्रण की आद्युनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबन्धन (आई0पी0एम0) के अन्तर्गत भी इन परम्परागत विधियों को अपनाने पर बल दिया जाता है। रबी फसलों की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई आगामी खरीफ फसल के लिए अनेक प्रकार से लाभकारी है। ग्रीष्मकालीन जुताई मानसून आने से पूर्व मई-जून महीने में किया जाता है।
उन्होने बताया कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मृदा की संरचना में सुधार होता है जिससे मृदा की जल धारण क्षमता बढ़ती है जो फसलों के बढ़वार के लिये उपयोगी होती है। खेत की कठोर परत को तोड ़कर मृदा को जड़ों के विकास के लिए अनुकूल बनाने हेतु ग्राष्मकालीन जुताई अत्यधिक लाभकारी है। खेत में उगे हुए खरपतवार एवं फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते हैं। जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है। मृदा के अन्दर छिपे हुए हानिकारक कीट जैसे दीमक,सफेद गिडार, कटुआ बीटिल एवं मैगेट के अण्डे, लार्वा व प्यूपा सूर्य की तेज किरणों के सम्पर्क में आने से नष्ट हो जाते हैं जिससे अग्रिम फसल में कीटों का प्रकोप कम हो जाता है। गर्मी की गहरी जुताई के उपरांत मृदा में पाये जाने वाले हानिकारक जीवाणु (इरवेनिया, राइजोमोनास, स्ट्रेप्टोमाइसीज आदि), कवक (फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लेरोटीनिया, पाइथियम, वर्टीसीलियम आदि), निमेटोड (रुट नॉट) एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव मर जाते है जो फसलों में बीमारी के प्रमुख कारण होते है। जमीन में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है।
मृदा में वायु संचार बढ़ने से खरपतवारनाशी एवं कीटनाशी रसायनों के विषाक्त अवशेष एवं पूर्व फसल की जड़ों द्वारा छोड़े गये हानिकारक रसायनों के अपघटन में सहायक होते है।
——-जि0सू0का0 आजमगढ़-07.05.2025——–