*TV20 NEWS|| LUCKNOW : उप्र के इस गांव में हर तीसरे घर से निकला है फौजी, बॉर्डर पर तैनात है एक हजार से ज्यादा युवा!
लखनऊ। बागपत जिले का जाट बाहुल्य एक गांव देशभक्ति का जीता-जागता उदाहरण है। गांव के करीब एक हजार युवा सेना व अर्धसैनिक बलों में सेवा दे रहे हैं। बॉर्डर पर सबसे ज्यादा तैनात सैनिक इसी गांव के हैं। मेजर से लेकर ब्रिगेडियर तक के पदों पर गांव के युवा तैनात है। हर परिवार में कोई न कोई सदस्य देश की सेवा में जुटा है। ‘सैनिकों का गांव ढिकौली’ बागपत से चमरावल मार्ग पर 14 किमी चलने पर यही लिखा हुआ बोर्ड लगा दिखाई देगा। यह बोर्ड ऐसे ही नहीं लगाया गया है। इस गांव में करीब एक हजार युवा सेना व अर्धसैनिक बलों में रहकर देश की सुरक्षा कर रहे हैं। इस समय भी बॉर्डर पर सबसे ज्यादा यहां के सैनिक तैनात हैं। यह युवा मेजर, कर्नल, लेफ्टिनेंट, ब्रिगेडियर समेत सभी पदों पर तैनात है।
बीस हजार की आबादी वाले जाट बाहुल्य गांव ढिकौली के युवाओं के दिलों में देश सुरक्षा और सेवा का जज्बा बचपन से दिखाई देता है। इसका कारण है कि अधिकतर परिवारों से कोई न कोई सदस्य सेना में रहकर देश की सुरक्षा कर रहे हैं। उनको देखकर ही बच्चों में सेना में जाने का जज्बा पैदा होता है। यह सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि समय के साथ जज्बा बढ़ता चला गया। इस समय बॉर्डर पर तैनात सैनिकों के परिजन कहते हैं कि हमारे देश में कायराना हरकत करने वाले आतंकियों को घर में घुसकर मारने वाले बेटों पर गर्व हैं। इस तरह ही बेटे देश की सीमा पर डटे रहेंगे और दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब देंगे। ढिकौली गांव के कमांडर सुनील ढाका, कर्नल अनिल ढाका, पुष्पेंद्र ढाका, अजित सिंह, अमित ढाका, मेजर कुलदीप, बॉबी ढाका, सूबेदार अनिल ढाका, लेफ्टिनेंट महिपाल ढाका समेत अन्य कई अहम पदों पर कार्यरत है।
ढिकौली के हवलदार हरपाल ढाका और सौराज सिंह ढाका 1965 में पाकिस्तान से जंग में शहीद हुए थे। धर्मपाल सिंह 1984 अमृतसर में देश सुरक्षा के लिए लड़ते हुए शहीद हुए। सुरेंद्र ढाका 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे।मेजर जनरल सुरेंद्र सिंह ढाका ने 1965, 71, 99 की जंग लड़ी थी। बिग्रेडियर रणबीर सिंह ने 1965, 71 की जंग लड़ी। बिग्रेडियर महेंद्र सिंह ने 1965, 71 की जंग में लोहा मनवाया। कर्नल बलवान सिंह ढाका, कर्नल सतेंद्र ढाका, कर्नल ओमबीर ढाका, कर्नल बलजोर ढाका ने 1965, 71 की जंग लड़ी थी। इनके अलावा कैप्टन महाराज सिंह ढाका और कैप्टन राजसिंह ढाका ने 1965, 71, 99 की जंग लड़ी थी। कैप्टन राजसिंह को 1965 की जंग में मृतक समझकर मोर्चरी भेज दिया गया था, लेकिन उनको दो दिन बाद होश आया। सूबेदार मेजर बलजोर ढाका और मेजर यशपाल सिंह ने 1962, 65, 71 की जंग लड़ी थी।
ढिकौली के स्व. कैप्टन राज सिंह ने 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ हुए युद्ध को लड़ा। उनके बेटे ओमबीर ढाका बताते हैं कि 1971 में भारतीय फौज लाहौर तक पहुंच गई थी, जिसमें उनके पिता कैप्टन राज सिंह भी शामिल थे। पिता लाहौर छावनी से जीत की निशानी के तौर पर पाकिस्तानी फौज की बैरक से उनका संदूक लेकर आए थे जो आज भी हमारे घर रखा है। मैं वर्ष 1965 में सेना में भर्ती होते ही पाकिस्तान के साथ हुई जंग में चला गया। मैंने 1971 की जंग भी लड़ी। दोनों बार पाकिस्तान को घर में घुसकर मारा था। इसके बाद भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अब हमारे गांव के बेटे भी पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। – प्रकाश वाल्मिकी, सेवानिवृत्त सैनिक
हमारे गांव के युवाओं में सेना में भर्ती होकर देश की सुरक्षा व सेवा करने का जज्बा बहुत है। अधिकतर युवा सेना में भर्ती की तैयारी करते हैं। माता-पिता का भी यही सपना है कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर सेना में भर्ती होकर अपने देश की रक्षा करें। – रामबीर सिंह, ग्रामीण
मैंने वर्ष 1965 और 1971 की जंग लड़ी थी। तब भी हमारे गांव के काफी सैनिक बॉर्डर पर थे और हम सभी ने दुश्मनों को ढेर कर दिया था। हमारा एक-एक सैनिक कई पर भारी पड़ा था। अब हमारे बेटे भी देश की सुरक्षा में लगे हैं और वह दुश्मन को उनकी नापाक हरकतों का जवाब देते रहेंगे। – इंद्रपाल ढाका, सेवानिवृत्त सैनिक