TV 20 NEWS || AZAMGARH : आजमगढ़: समूहन कला संस्थान का नाटक ‘हंसुली’—स्थानीय रंगमंच की जीवंत परंपरा का सशक्त प्रदर्शन
आजमगढ़: समूहन कला संस्थान का नाटक ‘हंसुली’—स्थानीय रंगमंच की जीवंत परंपरा का सशक्त प्रदर्शन
रंगकर्म की सीमित सुविधाओं वाले छोटे नगरों में भी समर्पित कलाकारों की बदौलत हिंदी रंगमंच जीवित है—इसका जीवंत प्रमाण हाल ही में आजमगढ़ के समूहन कला संस्थान द्वारा प्रस्तुत नाटक ‘हंसुली’ में देखने को मिला। बड़े शहरों की तरह यहां कोई बड़ा बजट, सरकारी संस्थानों की पूर्ण सहायता या उन्नत संसाधन नहीं हैं, लेकिन रंगकर्मियों का समर्पण, समय–बलिदान और लोकधर्मी जुड़ाव इस मंचन को विशिष्ट बनाता है।
राज कुमार शाह द्वारा निर्देशित, नाट्य रूपांतरित और प्रस्तुत ‘हंसुली’ केवल एक आभूषण की पीढ़ियों तक चलने वाली यात्रा की कहानी नहीं है, बल्कि संयुक्त परिवार के विघटन, जिम्मेदारियों से बचने और माता-पिता की उपेक्षा जैसे सामाजिक बदलावों को उजागर करता है। कहानी इस बात को रेखांकित करती है कि संपत्ति पर अधिकार तो सबको चाहिए, पर बुजुर्गों की देखभाल का दायित्व निभाने से नई पीढ़ी कतराती जा रही है।
समूहन कला संस्थान की प्रस्तुति की विशेषता इसकी आंचलिकता, लोकधुनों, लोकगीतों तथा आधुनिक रंगमंचीय तकनीकों का संतुलित मिश्रण है।
नाटक में कलाकारों की बहुमुखी प्रतिभा—अभिनय के साथ-साथ गीत-संगीत में दक्षता—स्पष्ट रूप से दर्शाई देती है।
माया के रूप में रिम्पी वर्मा का अभिनय खास तौर पर प्रभावित करता है, जबकि नवीन चंद्रा, अजय कुमार, सुनील कुमार, निवेदिता पांडेय, रितिका सिंह, रूप नारायण निषाद और माधुरी वर्मा की भूमिकाएँ प्रस्तुति को सशक्त बनाती हैं।
कहानी अखिलेश चंद्र की, संगीत निर्देशन अभिषेक कुमार गुप्त का है, तथा चित्रकला का प्रभावी उपयोग मंचन की सौंदर्यात्मकता बढ़ाता है।
‘हंसुली’ का यह मंचन साबित करता है कि छोटे नगरों का रंगमंच संसाधनों से नहीं, बल्कि रंगकर्मियों की लगन, रचनात्मकता और सांस्कृतिक चेतना से जीवित है—और नई पीढ़ी को सोचने, समझने और समाज के प्रति अपने दायित्वों को महसूस करने की प्रेरणा देता है।





