सफलता के लिए कभी सोचा नहीं, सार्थकता को कभी छोड़ा नहीं.. बस इतनी सी पहचान बन सकी है तेरे इस खाक़सार.. की
(देश के एक बड़े पत्रकार मित्र सुभाष झा सर ने मेरा बायोडाटा मांगा है)
अरविंद कुमार सिंह-
हिंदी साहित्य की परंपराओं और यात्राओं की जब-भी बातें होगीं तो उसमें आजमगढ़ के सरस्वती पुत्रों के योगदानों का जिक्र बरबस ही हो जायेगा. चाहे हिंदी भाषा को संस्कार देने वाले ‘प्रिय प्रवास’ के हरिऔध हों, या ‘वोल्गा से गंगा’ वाले राहुल सांकृत्यायन सरीखे महान क़़लमकार…या इस परंपरा के बहुतेरे नाम…उसी ऊपजाऊ माटी का शब्द-शिल्पी खाक़सार हूँ. सुनना, घुमना और फिर लिखना आदत में शुमार है. सीखने की ललक और शोधार्थी मन: स्थितियां ही चित्त का स्थायी भाव हैं. आंचलिक परिवेश की भावभूमि में गहरी रुचि और माटी से लगाव इतना कि इसे छोड़ नहीं सका. सफलता के लिए कभी सोचा नहीं, सार्थकता को कभी छोड़ा नहीं. बल्कि अभी तक की कुल इतनी ही पहचान बन सकी है कि- सार्थकता का आखिरी हिमायती और सहयात्री हूँ.
बरस 2002 से पत्रकारिता का आंचलिक सिपाही से सार्वजनिक जीवन में प्रवेश लिया. किताबों से ज्यादा परिस्थितियों ने मानस का पोषण किया है. मार्च-2008 से ‘शार्प रिपोर्टर’ नाम से एक मासिक पत्रिका की शुरुआत की. जो राजनीतिक और सामाजिक विषयों की वैचारिक मंच है. हिंदी पट्टी में जनांदोलन और पत्रकारिता का एक बड़ा नाम गोरखपुर के समाजवादी गुंजेश्वरी प्रसाद के संस्कार और आजमगढ के विनोद कुमार तथा डायनामाइट कांड के नायकों में से एक विजय नारायण जीे के आशीर्वाद का कृपापात्र हूँ. क्रांतिकारी पत्रकारिता का अपने समय के सूरज विचार मीमांसा के संपादक- विजयशंकर बाजपेयी का स्नेहपात्र हूँ. लकीरों पर चलने से बेहतर लकीरे खींचने में विश्वास करता हूँ. ‘जर्नलिज्म़ विद एक्टिविज्म़’ अपने पत्रकारिता जीवन का ध्येय वाक्य है.
पढ़ना-लिखना और इस क्रम में उपाधियाँ मिलना सकून देता है. बीए,एमए, बीएड, एलएलबी, एमफिल गोल्ड मेडलिस्ट होते हुए पीएचडी तक का सफ़र इसी रूचि का परिणाम है. देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपना सार्थक और संतोषप्रद लगता है. ‘किसी के काम आऊं, किसी को अपना बना लूं, या किसी का बन जाऊं’ इस अपरिपक्व जीवन का, अभी तक इतनी सी समझ विकसित हो सकी है. दो बरस पर एक बड़ा राष्ट्रीय जलसा आजमगढ़ में ‘मीडिया समग्र मंथन’ नाम से लोगो के सहयोग से करने की कोशिश करता हूँ. आजमगढ़ से लखनऊ और फिर बड़े नगरों तक पत्रकारिता के लिए घुमना जीवन का हिस्सा है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में राज्य मुख्यालय का मान्यता प्राप्त पत्रकार हूँ. शब्द कुछ भी संभव कर सकते हैं. इसी विश्वास से अविनाशी शब्दों के साथ अविनाशी विचारों का व्यापार करता हूँ. राष्ट्र वाद सरहदों पर ढूंढने की बजाय अपने परिवेश से अगाध प्रेम करता हूँ. बस यही मेरे परिचय की पारदर्शिया है… सच पूछेंगे तो अभी परिचय देने लायक पात्रता ही नहीं अर्जित कर सका हूँ…