आजमगढ़ 08 जून– उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) आजमगढ़ मंडल आजमगढ़, गोपालदास ने अवगत कराया कि कृषकों की आय दो गुनी करना शासन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। इसके लिए आवश्यक है कि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ लागत में कमी आये जिससे कृषकों की शुद्ध आय में वृद्धि हो सके। गोपाल दास गुप्ता, उप कृषि निदेशक (कृषि रक्षा) आजमगढ़ मण्डल, ने अवगत कराया है कि बीज शोधन एवं भूमि शोधन के द्वारा कम लागत में कीटों एवं रोगों का नियंत्रण कर गुणवत्ता युक्त अधिकाधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि फसल सुरक्षा के लिए भूमि शोधन अत्यंत आवश्यक है। 1 किलोग्राम ट्राई्कोड्रर्मा को 25 किलोग्राम कम्पोस्ट (गोबर की सड़ी खाद) में मिलाकर, हल्के पानी का छींटा देकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर रखकर उसे जूट के गीले बोरे से ढके ताकि इसके बीजाणु अंकुरित हो जाये। इस कम्पोस्ट को एक एकड़ खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें अर्थात अंतिम जुताई के पूर्व इसका प्रयोग करें, फिर बुआई/रोपाई करें।
यह फसल सुरक्षा का सबसे सस्ता, कारगर व प्रारंभिक उपचार है। बीज शोधन कर बुवाई करने से बीजों का अंकुरण व फसल की बढवार अच्छी होने के साथ-साथ उसमें बीमारी लगने के एक तिहाई अवसर घट जाते हैं।
धान को कण्डुआ (लेढ़ा) रोग से बचाव हेतु किसान भाई कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू0पी0 (रसायन) की 50 ग्राम मात्रा को 40-50 लीटर पानी में घोल लें, इस घोल में धान बीज की 25 किग्रा0 मात्रा को एक रात्रि के लिए डुबो कर रखें ताकि रसायन पानी के साथ बीज के अन्दर अवशोषित हो जाये, इसके पश्चात धान को 24 घण्टे तक छाया में सुखाकर अगले दिन नर्सरी डालें।
दहलनी फसलों में लगने वाले उक्ठा एवं अन्य बीमारियों के नियंत्रण हेतु ट्राइकोड्रर्मा (जैविक फफूंदी नाशक) की 4 से 5 ग्राम मात्रा 1 किलो०ग्रा० बीज को शोधित करने के लिए पर्याप्त होती है।
फसल सुरक्षा की अधिक जानकारी हेतु किसान भाई अपने विकास खण्ड स्थित कृषि रक्षा इकाई के प्रभारी अथवा अधोहस्ताक्षरी से मो0नं0- 9415592498 पर संपर्क कर सकते हैं।