आजमगढ़। जनपद की शान प्रख्यात नाट्ककार पंडित लक्ष्मी नारायण की स्मृति में शैदा साहित्य मंडल आजमगढ़ की ओर से एक विचार व काव्य गोष्ठी का आयोजन नगर के ब्रह्मस्थान स्थित हास्य व्यंग के कवि उमेश चन्द्र श्रीवास्तव मुंहफंट के आवास पर सम्पन्न हुई। सर्वप्रथम पंडित जी के चित्र पर पुष्पाजंलि अर्पित कर उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए शैदा अध्यक्ष हरिहर पाठक व शशिभूषण प्रशांत ने हिन्दी साहित्य के उन्नयन पर बल दिया।
काव्य पाठ की कमान संभालते हुए विजयेन्द्र प्रताप ने सांझ ढलने लगी आस जगने लगी, रात दीपक के लौ से संवर जायेगी सुनाया तो तालियों की गूंज एक बार जो शुरू हुई तो देरशाम को गुलजार किये रखा। इसके बाद प्रसिद्ध गजलकार आशा सिंह ने क्या शिकायत करूं क्या-क्या करूं शुक्रिया से महफिल को जीवंत कर दिया। रूद्रनाथ चौबे रूद्र ने जब जब अंर्तमन में कोई प्रसव की पीड़ा पलती है सुनाकर लोगों मन को झकझोर दिया इसके बाद प्रतिभा श्रीवास्तव ने लड़किया पढना चाहती है उनसे कहा गया जरूरत क्या है सुनाकर समाज की धारणा पर चोट किया।
वहीं स्नेहलता राय ने कहने को मेरा अंश मात्र है प्रस्तुत करके सोचने को मजबूर कर दिया। इसके बाद विजय यादव ने जिस देश में मां शारदे मान महत्व है सुनाया और अजय गुप्ता ने कोई गिला हीं नहीं तुमसे मेरी निगाहों को प्रस्तुत किया वहीं अभिराज बेदर्दी ने कान में रूई आंख पे पर्दा जवां पे खंजर है सुनाकर दिल जीतने का काम किया। इसके बाद रोहित बारी ने हम अपनों से दूर चलने लगे है सुनाया तो राजनाथ राज ने स्याह राते हमें डराती सुनाकर आत्मबोध कराया। सरोज यादव ने चीन चीन्हीं नाही पइबा आपन नक्शा सुनाकर कजरी के माध्यम से देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत कर दिया। इसके बाद शैलेन्द्र मोहन राय ने बरसे फुहर रसगारी हो रामा! बेलनहारी सुनाकर लोगों को ठहाके लगाने को विवश कर दिया।
राजकुमार आर्शीवाद ने सावन सुहाने लो फिर आ गये गाकर चचंल हवाओं से रूबरू कराया। राकेश पांडेय ने क्या लौटेंगे जो दिन बीते हमारी बुढ़िया काकी के सुनाकर पुराने दिनों की स्मृतियों के पन्नों को खाल दिया। बालेदीन बेसहारा ने पहले रसखान सूर मीरा कबीरा तो बनो सुनाकर समाज को संदेश दिया। जयहिन्द सिंह हिन्द ने कमर झुक गयी है पर दौड़ने लगा हूं प्रस्तुत किया तो देवेन्द्र कुमार ने जब अधर्म का राज हुआ मानवता पतित हुई भू पर सुनाया वहीं महेन्द्र मृदुल ने आदमी हम बने यह हुनर दे कलम सुनाया। उमेश चन्द्र श्रीवास्तव बिना दुआ सलाम दफ्तर बेकार है सुनाया तो प्रशांत ने मेंहदीले सपनांं से दिन मनचीते अपनों से दिन प्रस्तुत किया। डा अम्बरीश ने नाटक बहुत है बाबू एक खरीददार चाहिए सुनाया तो वहीं हरिहर पाठक ने जाता न हे बदरा पिया की नगरिया सुनाकर गोष्ठी को समापन किया। अंत ने आंगतुकों के प्रति मुंहफट ने आभार जताया। इस मौक पर तमाम सोशल डिस्टेसिंग के साथ तमाम कविप्रेमी मौजूद रहे।