आजमगढ़ : जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने कृषकों को सचेत करते हुये खरीफ की धान में लगने वाले खरपतवार, सामयिक कीट/रोगों के नियन्त्रण हेतु सुझाव दिया
प्रेस नोट
आजमगढ़ 31 अगस्त– जिला कृषि रक्षा अधिकारी श्री सुधीर कुमार द्वारा कृषकों को सचेत करते हुये खरीफ की धान में लगने वाले खरपतवार, सामयिक कीट/रोगों के नियन्त्रण हेतु सुझाव दिया गये हैं। उन्होने बताया कि इस समय धान की फसल में खरपतवार, सामयिक कीट एवं रोग की पहचान करने के बाद संस्तुत रसायनों का प्रयोग करके अपनी फसल को इनसे बचाया जा सकता है।
जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताया कि संकरी एवं चौड़ी पत्ती खरपतवारों के नियन्त्रण के लिये प्रटिलाक्लोर 50 प्रतिशत ईसी 1.5 ली0 अथवा एनीलोफॉस 30 प्रतिशत ईसी की 1.25 से 1.5 ली0 अथवा पाइराजोसल्फुरान इथाइल 10 प्रति डब्ल्यूपी 0.15 किग्रा0 को 500 से 600 ली0 पानी में घोलकर फ्लैटफैन नॉजिल से 2 इंच भरे पानी में रोपाई के 15 से 20 दिन के अन्दर छिड़काव करना चाहिये तथा विषपायरी बैक सोडियम 10 प्रति0 एस0सी0 0.002 ली0 रोपाई के 15 से 20 दिन स्थिति में 300 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये। दीमक एवं जड़ की सूडी एक सामाजिक एवं सर्वभक्षी कीट है, जो फसलों एवं घरी दोनो जगह नुकसान पहुंचाती है। इन दोनों कीटों का प्रकोप कम नमी वाले खेतों में होता है। यदि अपनी फसल में इनका प्रकोप दिखाई दे तो क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रति0 ईसी 2.5 ली0 प्रति हे0 की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें। खैरा रोग के प्रकोप से फसल की पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है तथा बाद में ये कत्थई रंग के हो जाते हैं, पौधा चौना रह जाता है। इसके नियन्त्रण के लिये 5 किग्रा0 जिंक सल्फेट को 20 किग्रा0 यूरिया अथवा 25 किग्रा0 बुझे हुये चूने को प्रति हे0 की दर से 1000 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये। तना छेदक कीट फसल में लगने के बाद वो पौधे को अन्दर से खाता रहता है, जिससे पौधा बाद में पीला होकर सूख जाता है। इसके बचाव हेतु फेरोमोन ट्रैप (एसबी ल्योर) 6-8 प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिये तथा रासायनिक नियन्त्रण हेतु क्यूनालफॉस 25 प्रति0 ईसी0 1.5 ली0 अथवा क्लोरपाइरीफॉस 20 प्रतिशत ईसी0 1.25 ली0 अथवा फिप्रोनिल 5 प्रति एससी 1.0 से 1.5 ली0 500 से 600 ली0 पानी में घोल बनाकर प्रति हे0 की दर से अथवा कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी0 की 18 किग्रा0 मात्रा को प्रति हे0 की दर से 3 से 5 सेमी0 स्थिर पानी में बिखेर कर प्रयोग करें।
पत्ती लपेटक कीट धान की पत्तियों पर समूह में अण्डे देती है। इस कीट की सूडिया शुरुआत में पीले रंग की होती हैं, बाद में इनका रंग हरा हो जाता है, जो फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। इस कीट के नियन्त्रण हेतु क्लोरोपायरीफॉस 20 प्रतिशत 2.0 ली0 अथवा क्यूनालफॉस 25 प्रतिशत ईसी की 1.25 ली0 मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 ली0 पानी में घोलकर छिड़काव करें। जीवाणु झुलसा रोग में पत्तियां नोंक अथवा किनारे से एक दम सूखन लगती है। सूखे हुये किनारे अनियमित एवं टेढ़े-मेढे होते है। इसके उपचार के लिये फसल में रोग के लक्षण दिखाई देन पर नत्रजन की टॉपड्रेसिंग यदि बाकी हो तो उसे रोक दें, खेतों में पानी भरा हो तो उसे निकाल दें तथा इस रोग के रसायनिक उपचार के लिये 15 ग्रा0 स्ट्रेप्टोसाइक्लीन व कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 500 ग्रा0 मात्रा को 800 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। जीवाणुधारी रोग के कारण पत्तियों पर कत्थई रंग की लम्बी-लम्बी धारियां नसो के बीच में पड़ जाती हैं। इस रोग के उपचार के लिये 15 ग्रा0 स्ट्रेप्टोसाइक्लीन व कॉपर ऑक्सीक्लोराइड के 500 ग्रा0 मात्रा को 800 ली0 पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
—-जि0सू0का0 आजमगढ़-31-08-2021—–