PRAYAGRAJ : अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में 62 वर्ष पर सेवानिवृत होने वाले शिक्षकों/प्रोफेसरों को मिलेगी ग्रेच्युटी

अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों में 62 वर्ष पर सेवानिवृत होने वाले शिक्षकों/प्रोफेसरों को मिलेगी ग्रेच्युटी,

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल बंच ऑफ रिट पिटीशन (WRIT – A No. – 5724 of 2024University College Ret. Teachers Welfare Asso. Lko. Thru. Its President Dr. S.S.Chauhan And v. State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Deptt. Of Higher EducationU.P. Lko.)
में निर्णय देते हुए न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय और अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालय में कार्यरत शिक्षकों के पक्ष में फैसला देते हुए यह निर्णय दिया कि जो शिक्षक 62 वर्ष की उम्र में अवकाश ग्रहण कर रहे हैं, उन्हें भी ग्रेच्युटी का लाभ दिया जाएगा। न्यायालय ने माननीय उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णय पर भरोसा जताते हुए उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय और महाविद्यालय शिक्षकों को ग्रेच्युटी के भुगतान से संबंधित दो महत्वपूर्ण प्रश्नों का निर्धारण किया:
(1)क्या शिक्षक ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ‘कर्मचारी’ की परिभाषा में शामिल हैं और क्या वे ग्रेच्युटी के हकदार हैं?
उत्तर: इस प्रश्न का उत्तर न्यायालय ने “हां” में देते हुए कहा कि 2009 के संशोधन के बाद शिक्षकों को पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट में ‘कर्मचारी’ के रूप में शामिल किया गया है। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्णीत कई निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने अहमदाबाद प्राइवेट प्राइमरी टीचर केस 2004 (Ahmedabad Private Primary
Teachers’ Association versus Administrative Officer and others, (2004) 1SCC 755) के आधार पर पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट 1972 जो की 2009 में संशोधित किया गया था के धारा 2(e) में दिए गए एम्पलाई(कर्मचारी) की परिभाषा में शिक्षक भी शामिल है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माननीय उच्चतम न्यायालय के इंडिपेंडेंस स्कूल फेडरेशन केस 2022( Independent Schools’ Federation of India versus Union of India andAnother, 2022 SCC OnLine SC 1113) पर भरोसा जताते हुए यह कहा कि पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट 1972 में 2009 के संशोधन द्वारा एम्पलाई( कर्मचारी) परिभाषा को अब ठीक कर लिया (rectify)गया है और अब यह शिक्षण संस्थानों पर भी लागू है। अतः पेटीशनर (याचीगण) पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट 1972 यथा संशोधित 2009 में दिए गए “कर्मचारी” की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं तथा शिक्षक भी ग्रेच्युटी पाने के हकदार हैं।

दूसरा प्रश्न वह आधारित करते हुए:

(2)शिक्षक भले ही वे ‘कर्मचारी’ परिभाषा के अंतर्गत आते हों, जिन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के दिनांक 30.0 3. 1983 के शासनादेश के अंतर्गत अपना विकल्प (62वर्ष) पहले से भरा हुआ है उन्हें स्वीकृति /विवंध के सिद्धांत ( principles of acquiescence/estoppel) के आधार पर क्या ग्रेच्युटी से वंचित किया जा सकता है?
उत्तर: न्यायालय ने इस प्रश्न का उत्तर भी याचीगण के पक्ष में देते हुए देते हुए कहा कि पेमेंट आप ग्रेच्युटी एक्ट में किए गए संशोधन को भूतलक्षी प्रभाव (retrospective effect)से लागू किया गया है, इसलिए, विश्वविद्यालय और महाविद्यालय के शिक्षक भी 3 अप्रैल 1997 से ग्रेच्युटी का लाभ पाने के हकदार हैं। ऐसे शिक्षकों को ग्रेच्युटी लाभ से वंचित करना जिन्होंने अपने विकल्प का प्रयोग 60(अधिवर्षिता आयु बढ़ाने के कारण वर्तमान में अब 62 वर्ष) किया था और विस्तारित अवधि तक सेवा में बने रहे है वह सभी भी ग्रेच्युटी पाने के हकदार है। उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश दिनांक 30.03.1983 और 04.02.2004 को इस सीमा तक रद्द किया जाता है।( ध्यातव्य हो कि उत्तर प्रदेश में 62 वर्ष की अवस्था में रिटायर होने वाले शिक्षकों को उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश दिनांक 30.03.1983 और 04.02.2004 के द्वारा ग्रेच्युटी के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। वर्ष 1983 और 2004 के शासनादेश द्वारा ग्रेच्युटी को 60 वर्ष पर सेवा निवृत्ति होने वालों शिक्षकोंके लिए ही सीमित किया गया है) । न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णय का सहारा लेते हुए इस प्रकरण में यह निर्णय दिया कि स्वीकृति /विवंध का सिद्धांत वैधानिक शर्तों के ऊपर पर लागू नहीं किया जा सकता है ( principles of acquiescence/estoppel can not prevail over Statutaory condition)। न्यायालय ने अन्य विभिन्न निर्णय का सहारा लेते हुए यह भी कहा कि पेमेंट आप ग्रेच्युटी एक्ट 1972 यथा संशोधित 2009 के प्रावधान के ऊपर कोई भी शासनादेश अभिभावी नहीं हो सकता है। कोई भी अन्य अधिनियम/ दस्तावेज/ संविदा (other Act/Instrument /Contract)के अंतर्गत विकल्पपत्र जो भरे गए हैं और वह ग्रेच्युटी को 60 वर्ष की अवस्था तक सीमित करते हैं वह पेमेंट आफ ग्रेच्युटी एक्ट 1972 यथा संशोधित 2009 के ऊपर अभिभावी नहीं हो सकते हैं।

उपरोक्त दोनों प्रश्नों को अवधारित करने के साथ ही न्यायालय ने उपरोक्त प्रावधानों के आधार पर विपक्षीगणों (1.उत्तर प्रदेश सरकार,प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा 2. शिक्षा निदेशक उच्च शिक्षा 3. वित्त नियंत्रक उच्च शिक्षा निदेशालय प्रयागराज) को याचीगण को ग्रेच्युटी का भुगतान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ताओं को ऐसे बकाया पर 6% प्रति वर्ष की दर से ब्याज सहित उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख से वास्तविक भुगतान की तारीख तक भुगतान का निर्देश दिया है। इस निर्णय की सत्यापित प्रतिलिपि प्राप्त होने के 6 माह के अंदर विपक्षीगण द्वारा निर्णय का अनुपालन सुनिश्चित किया जाएगा।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने यह निर्णय उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालय/ महाविद्यालय शिक्षकों के हित में उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णय के आधार पर दिया है इसलिए इस प्रकरण में उम्मीद की जाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार डिवीजन बेंच में या उच्चतम न्यायालय में अपील में नहीं जाएगी। यह निर्णय सर्वबंधी (Right in Rem) प्रकृति का निर्णय है, इसलिए अन्य जो भी शिक्षक अधिवर्षिता को प्राप्त हो चुके हैं या अधिवर्षिता को प्राप्त होने वाले हैं वह सभी भी शिक्षा निदेशक/वित्त नियंत्रक के समक्ष इस निर्णय के आधार पर ग्रेच्युटी की मांग कर सकते हैं।