खौफ का दूसरा नाम शहाबुद्दीन हुआ करता था 

शहाबुद्दीन की मौत पर याद आ रहे चंदा बाबू जिनके दो बेटों को इस निर्दयी अपराधी के गुर्गों द्वारा तेजाब से नहला दिया था और एक बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।

याद करिए उस बिहार को जब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव हुआ करते थे, बिहार का वो जंगलराज, जिस राज में शाम होते ही अपने घरों में दुबक जाने को लोग मजबूर होते थे। सिवान जिले में शहाबुद्दीन की अपराध की दुनिया की एक अलग कहानी हुआ करती थी। अपहरण, लूट, हत्या, जैसे इनके लिए कोई खेल हो ! जब मन किया खेल लिया।

आज शहाबुद्दीन की मौत पर याद आ रहे चंदा बाबू जिनके दो बेटों को इस निर्दयी अपराधी के गुर्गों द्वारा तेजाब से नहला दिया था और एक बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उसके बाद चंदा बाबू को सिवान छोड़कर भागने को मजबूर किया गया लेकिन चंदा बाबू सिवान में रहकर न्याय की लड़ाई लड़ना शुरू किए और शहाबुद्दीन को तिहाड़ जेल तक कि यात्रा कराई। ये तब सम्भव हो पाया था जब बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बनी।

जिस दौर में सीवान का बहुचर्चित तेजाब कांड हुआ था उस वक्त बिहार में लालू-राबड़ी का शासनकाल था और बिहार में बाहुबलियों का दबदबा हुआ करता था। उस दौर में शहाबुद्दीन के नाम से पूरा इलाका कांपता था। एक दौर में खौफ का दूसरा नाम शहाबुद्दीन था। उस दौर के लोगों यह बात बड़ी शिद्दत से याद है कि सीवान की धरती पर शहाबुद्दीन का नाम लेना गुनाह माना जाता था। उनका उपनाम ‘साहेब’ था।

शहाबुद्दीन को ‘सीवान के साहेब’ कहलाना बेहद पसंद था। पर आज उस व्यक्ति को भी याद करना बेहद आवश्यक है जिसने सीवान की धरती के इस खौफ का खात्मा करने में अहम योगदान दिया।भले ही उन्होंने अपने तीन बेटों को खो दिया, लेकिन वे अड़े रहे और सीवान के साहेब को तिहाड़ जेल की ऐसी यात्रा करवाई कि वहां से उनकी मौत की खबर ही बाहर आई. जी हां ….. हम बात कर रहे हैं शहाबुद्दीन के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले और उन्हें तिहाड़ जेल पहुंचाकर दम लेने वाले चंदेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू की।

चंदा बाबू ने भी दिसंबर 2020 के में ही दुनिया को अलविदा कह दिया था पर मरते-मरते भी उनकी बेखौफ आंखों में न्याय का संघर्ष और उसके फलस्वरूप मिली जीत की चमक देखी जा सकती थी। दरअसल सीवान में हुए चर्चित तेजाब कांड के खिलाफ चंदा बाबू ने लड़ाई लड़ी थी, जिसके बाद शहाबुद्दीन पर एक्शन हुआ था।

चंदा बाबू की जिंदगी बेहद दर्दभरी रही, शहर के प्रसिद्ध व्यवसायी चंदा बाबू ने सीवान के बहुचर्चित तेजाब हत्याकांड मामले में अपने दो बेटों को खो दिये थे जबकि तीसरे बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसी तेजाब हत्याकांड के मुख्य गवाह चंदा बाबू ही जिंदा बचे थे। उन्होंने अपने बेटों की हत्या के आरोपित शहाबुद्दीन के खिलाफ कानून लड़ाई लड़ कर पूर्व सांसद को तिहाड़ जेल भिजवा कर ही दम लिया। शहाबुद्दीन पर लगे थे चंदा बाबू के बेटों को तेजाब से मारने के आरोप

चंदा बाबू सीवान के जाने-माने व्‍यवसायी थे। 2004 में जब कुछ बदमाशों ने उनसे रंगदारी मांगी थी, तो उन्होंने देने से इनकार कर दिया था। चंदा बाबू के इस इनकार के बाद उनके जीवन में सबकुछ बदल गया। दरअसल, जब बदमाशों ने रंगदारी मांगी, तो चंदा बाबू का बेटा दुकान पर था। चंदा बाबू के तीन बेटों गिरीश, सतीश और राजीव का अपहरण कर लिया गया। इसी बीच चंदा बाबू के बेटों की बदमाशों से कहासुनी हुई और बदमाशों ने चंदा बाबू के दोनों बेटों पर तेजाब डाल दिया।

शहाबुद्दीन के गुर्गों ने गिरीश और सतीश को तेजाब से नहला कर मार दिया था, जबकि इस मामले का चश्मदीद चंदा बाबू का छोटा बेटा राजीव किसी तरह बदमाशों की गिरफ्त से अपनी जान बचाकर भाग निकला। इसी के बाद चंदा बाबू ने शहाबुद्दीन के खिलाफ कानूनी लड़ाई की शुरुआत की थी, जो 2004 से शुरू होकर लंबे वक्त तक चली।

जानकार लोग बताते हैं कि 2004 में जब घटना घटी थी तो चंदा बाबू पटना गए हुए थे। शुभचिंतकों ने चंदा बाबू को बार-बार कहा कि वे सीवान न आएं, नहीं तो उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया जाएगा। बेटों की मौत के बाद चंदा बाबू किसी तरह सीवान पहुंचे। इंसाफ के लिए एसपी की चौखट पर गए, लेकिन मिलने नहीं दिया गया था। थक हारकर चंदा बाबू थाने पहुंचे तो वहां दारोगा ने कहा कि आप फौरन सीवान छोड़ दीजिए, तब अफसरों से लेकर नेताओं तक की चौखट छान ली थी, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। बावजूद इसके चंदा बाबू ने हार नहीं मानी।

चंदा बाबू के तीसरा बेटा राजीव भाइयों के तेजाब से हुई हत्याकांड का गवाह बना था, लेकिन 2014 में सीवान शहर के डीएवी मोड़ पर उसकी भी गोली मार कर हत्या कर दी गई। गौरतलब है कि हत्या के महज 18 दिन पहले ही राजीव की शादी हुई थी। इतने जुल्मोसितम के बाद भी चंदा बाबू व उनकी पत्नी अपने एक अपाहिज बेटे के साथ सीवान में डटे रहे और बाहुबली से लंबी लड़ाई लड़ी और शहाबुद्दीन को सलाखों के पीछे पहुंचा कर ही दम लिया।

2005 में सत्ता में आने के बाद नीतीश सरकार ने शहाबुद्दीन पर कार्रवाई शुर की थी जिसकी बदौलत शहाबुद्दीन को जेल व चंदा बाबू को न्याय मिल पाया। आज शहाबुद्दीन की तिहाड़ यात्रा और उसकी मौत मि खबर सुनने के लिए चंदा बाबू जिंदा नहीं हैं क्यों कि पिछले ही साल 2020 में उनकी मृत्यु हो गई थी।

शहाबुद्दीन ने चंदा बाबू की हंसती खेलती दुनिया उजाड़ दी थी। डरी-सहमी चंदा बाबू की पत्नी, दोनों बेटियां और एक अपाहिज बेटा भी घर छोड़कर जा चुके थे। सारा परिवार बिखर चुका था, तीसरे बेटे को भी मार दिया गया था। हालांकि, अपने बेटों के लिए न्याय की इस लड़ाई में उनकी पत्नी भी कभी मौत के सामने झुकी नहीं। कुछ महीने पूर्व पत्नी की मौत के बाद चंदा बाबू अकेले हो गए थे और 16 दिसंबर, 2020 को अचानक जिंदगी से जंग हार गए। अब तो शहाबुद्दीन भी इस दुनिया से चले गए, लेकिन सीवान के साहेब के खौफ की कहानी और चंदा बाबू के संघर्ष की दास्तां दशकों तक लोगों की जेहन में जिंदा रहेंगे।

शहाबुद्दीन बिहार की राजनीति का एक ऐसा चेहरा जिस चेहरे में ना जाने कितने चेहरे समाए हुए थे। सीवान के छोटे से इलाके से शुरू हुई आतंक और खौफ के साथ राजनीतिक पकड़ ने शहाबुद्दीन को इतना बड़ा बना दिया कि जेल में रहते हुए विधानसभा के चुनाव जीते और देखते-देखते सीवान के सांसद भी बन गए। शहाबुद्दीन की शख्सियत ऐसी की कोई उसे रॉबिन हुड बताता तो कई लोग इसे आतंक और दहशतगर्दी का दूसरा नाम। तिहाड़ जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे शहाबुद्दीन को कोरोना होने के बाद कुछ दिन पहले दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां आज उसका निधन हो गया।

सीवान की धरती पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की धरती रही है। इस धरती पर शहाबुद्दीन जैसा बाहुबली पैदा होना आसान नहीं था। वह दौर था जब बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संघर्ष का सिलसिला शुरू हुआ शहाबुद्दीन उन दिनों खून खराबे के लिए प्रचलित हो रहा था, 1986 का साल था जब पहली बार शहाबुद्दीन पर हुसैनगंज थाने में FIR दर्ज की गई। उस समय शहाबुद्दीन की उम्र मात्र 19 साल थी। उसके बाद शहाबुद्दीन ने अपराध के दुनिया में वो पहचान बनाई जिससे सीवान में उसके नाम की दहशत फैल गई। चोरी, डकैती, हत्या, अपहरण, रंगदारी, दंगा जैसे एक दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज होते चले जा रहे थे जो थमने का नाम ही नबीन ले रहे थे।

मुझे अच्छी तरह याद है मेरे गाँव के बगल में पटना नाम का एक गाँव है जहाँ के एक छोटे बच्चे का अपहरण शहाबुद्दीन के गुर्गों ने कर लिया था। उस समय देवरिया के कप्तान तेजतर्रार आईपीएस अमिताभ ठाकुर थे, खबर मिलते ही अमिताभ ठाकुर ने पुलिस की गाड़ियों की एक लंबी शृंखला, भारी पुलिस बल के साथ सिवान जिले में प्रवेश कर गए।

घर के लोगों को घसीटते हुए गाड़ियों में बैठाने की बातें उस समय खूब चर्चा का केंद्र बिंदु हुआ करती थीं। अंततः वो बच्चा भी मक्के के खेत से मिल भी गया था और शहाबुद्दीन का इकबाल भी काफी हद तक अमिताभ ठाकुर ने तोड़ कर रख लिया था। सुनने में तो यह भी आया था कि यूपी पुलिस की इस कार्यवाही और अमिताभ ठाकुर के काफिले पर बिहार के पुलिस वालों ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘” बाप रे बाप देखा उपी पुलिस को शहाबुद्दीन के ……में सीधे लाठी ही कर दिया है।