जमीयत की सुप्रीम कोर्ट में अर्जी, कैदियों को सशर्त जमानत देने की मांग, दी यह दलील

नई दिल्‍ली। जमीयत उलमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-e-Hind) ने कोरोना संकट के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट देश भर के पात्र कैदियों को सशर्त जमानत देने का आदेश देने की गुजारिश की है। जमीयत ने शीर्ष अदालत द्वारा कोरोना वायरस प्रकोप के मद्देनजर जेलों में भीड़ घटाने से जुड़े मुकदमे में खुद को पक्षकार बनाने की मांग की है। जमीयत ने दलील दी है कि कोविड-19 के कारण अगर किसी निर्दोष अंडरट्रायल कैदी की मौत होती है, तो यह न्याय का उल्लंघन और आपराधिक न्याय प्रणाली पर धब्बा होगा।

कैदियों के संक्रमित होने का हवाला दिया 

जमीयत ने उन मीडिया रिपोर्टों का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया था कि मुंबई की आर्थर रोड जेल के कई कैदियों को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। याचिका में कहा गया है कि महाराष्ट्र में 11,000 कैदियों की पहचान उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा की गई थी, लेकिन केवल 2,520 को रिहा किया गया है। मध्य प्रदेश में पैनल द्वारा चिह्नित 12,000 के मुकाबले सिर्फ 6,033 कैदियों को रिहा किया गया है। इसलिए यह आवश्यक है कि चिह्नित कैदियों को बिना विलंब किए रिहा किया जाए।

विचाराधीन कैदियों को दी जाए जमानत 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि कोरोना (Coronavirus) महामारी की पृष्ठभूमि में सात साल से कम की सजा काट रहे और विचाराधीन कैदियों को जमानत या पैरोल दिया जाना चाहिए। बीते दिनों जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) ने अपने बयान में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को इस मामले में कहा था कि सभी राज्य सरकारें जेल में बंद कैदियों की जमानत के मसले पर एक कमेटी का गठन करें ताकि उनको मानवीय आधार पर जमानत या पैरोल दी जा सके।

फंसे हुए श्रमिकों पर याचिका की सुनवाई आज 

सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को उस याचिका की सुनवाई करेगा, जिसमें फंसे हुए सभी श्रमिकों की पहचान करने और उन्हें सम्मानजनक ढंग से घर भेजने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है। उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के चलते फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने के लिए इन दिनों विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं।

रुख साफ कर चुका है सुप्रीम कोर्ट 

गौर करने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहले ही साफ कर चुका है कि कोरोना के मद्देनजर जेलों में बंद डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, गुर्दे व सांस संबंधी बीमारियों से ग्रसित 50 साल से ऊपर के कैदियों की पैरोल व जमानत पर रिहाई के लिए केंद्र या राज्य सरकारों को कोई आदेश नहीं दे सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश एसए बोवड़े और जस्टिस एल नागेश्वर राव की खंडपीठ ने कहा था कि हमें नहीं पता कि सरकार इस बारे में क्या सोच रही है लेकिन अदालत का मानना है कि एक-एक मामले को उसकी अहमियत से परखा जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि हम इस मामले में कोई आदेश नहीं थोप सकते हैं।

यह दी थी दलील 

याचिकाकर्ता एडवोकेट अमित साहनी ने अपनी याचिका में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का हवाला देते हुए कहा था कि कोरोना से हाइ ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, गुर्दे और सांस की समस्या से जूझ रहे अधिक उम्र के कैदियों को ज्यादा खतरा है। याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं इस मामले का संज्ञान लेकर क्षमता से ज्यादा भरी जेलों से कैदियों की भीड़ कम करने के लिए 23 मार्च को केंद्र और राज्यों को सात साल से कम सजा काट रहे कैदियों को अंतरिम जमानत अथवा पैरोल पर रिहाई के आदेश दिये हैं लेकिन 50 साल से अधिक कैदियों का मामला नहीं उठा है।