सरकार चाकुलिया के चावल मिलों को जिंदा करे तो फिर लौट सकते हैं पुराने दिन

जमशेदपुर। झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया में यदि चावल मिलें पुन: चालू हो जाएं तो इलाके की सूरत बदल जाएगी। फिर से पुराने दिन लौट आएंगे। घर-घर रोजगार संपन्न लोग दिखाई देने लगेंगे। यही नहीं धान की खेती करने वाले किसानों की अर्थव्यस्था समृद्ध हो जाएगी। पुन: यहां से बांग्लादेश, फ्रांस व जर्मनी आदि देशों में चावल का निर्यात शुरू हो जाएगा।

पड़ोसी राज्य ओडिशा व पश्चिम बंगाल के साथ झारखंड के सभी राज्यों में यहां के चावल की मांग शुरू हो जाएगी। इसके लिए राज्य सरकार को ठोस पहल करनी होगी। विशेषज्ञ भी मानते हैं कि झारखंड सरकार को इसके लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए। प्रतिष्ठित उद्यमियों, कृषि वैज्ञानिकों और मार्केटिंग विशेषज्ञों के साथ विस्तृत संवाद के लिए टीम गठित करनी चाहिए। चाकुलिया को चावल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए क्या करना चाहिए, आइए जानते हैं विशेषज्ञों की राय:

उन्नत बीज के इस्तेमाल से ही बढ़ेगा चावल का उत्पादन

  •  कम दिनों में तैयार होने वाले धान के बीजों का अधिक प्रयोग करना होगा
  • गोंद्रा विधान, स्वर्ण श्यामली, नवीन, वंदना बीज 90-120 दिन में होते तैयार

मानसून के भरोसे पारंपरिक खेती करने के कारण पूर्वी सिंहभूम जिले में धान का पैदावार नहीं बढ़ रहा है। जिले में धान पैदावार की अभी जो स्थिति है उसे बेहतर बनाने के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीज के साथ-साथ वैज्ञानिक पद्धति से खेती करनी होगी। सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण किसानों को कम दिनों में तैयार होने वाले धान के बीजों का प्रयोग अधिक करना होगा। धान की पैदावार बढ़ाने के लिए जिले के हर क्षेत्र में सिंचाई की समुचित व्यवस्था करनी होगी। मानसून के भरोसे खेती करने के कारण इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ता है। बारिश हुई तो खेती शुरू, वरना नहीं। देर से खेती शुरू होने पर सभी किसान धान की रोपनी भी नहीं कर पाते हैं। ऐसे में किसानों को कम मात्रा में चारा डालना होगा। 12 से 15 दिनों का बिचड़ा लगाना होगा।

90 से 120 दिनों में हो जाती है धान की फसल तैयार 

मेरे हिसाब से कम समय में धान की खेती करने के लिए किसान गोंद्रा विधान, स्वर्ण श्यामली, नवीन, वंदना आदि धान के बीच का इस्तेमाल कर सकते हैं। इन बीजों से 90 से 120 दिनों में धान की फसल तैयार हो जाती है और सिंचाई के लिए अधिक पानी की भी जरूरत नहीं होती है। तालाब के नीचे नमी वाले खेतों में ऐसे बीज से पैदावार अधिक होता है। जिले के किसान अब भी 135 दिनों में तैयार होने वाले धान के बीज का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। जिले के चाकुलिया, धालभूमगढ़ और बहरागोड़ा आदि क्षेत्रों में धान की पैदावार अधिक है, शेष क्षेत्र में अगर पानी की सुविधा मिले तो निश्चित तौर पर जिले में धान का उत्पादन और अधिक बेहतर होगा। घाटशिला अनुमंडल क्षेत्र में धान की पैदावार अधिक होने के कारण यहां कई धान मिलें भी चल रही हैं। ऐसे में किसानों को अपने उत्पादन से समुचित लाभ भी मिल रहा है।

  •  40 फीसद किसान पूर्वी सिंहभूम जिले में अब भी कर रहे पारंपरिक तरीके से खेती
  • 08 हजार हेक्टेयर भूमि पर इस जिले में हो रही गरमा धान की भी खेती
  • इस जिले में मानव बल की कमी नहीं, ना ही उन्नत किस्म के बीजों की
  •  चाकुलिया में चावल मिलों को चालू करने के लिए सरकार बनाए कार्ययोजना

यदि पानी की सुविधा मिले तो  चमक उठेगा धान का कटोरा

चाकुलिया के साथ-साथ पूर्वी सिंहभूम जिला धान का कटोरा कहलाता है। यहां की जमीन उपजाऊ है। धान उत्पादन के लिए बेहतर है। इस जिले के पूर्वांचल में पानी की सतह काफी ऊपर है। धान की फसल के लिए पानी की अधिक जरूरत है। पानी की सुविधा रहने के कारण इस जिले में आठ हजार हेक्टेयर भूमि पर गरमा धान की भी खेती होती है। वहीं, कुछ किसानों ने खुद के पैसे से बोरिंग लगा पंप लगाया है। सिंचाई की व्यवस्था कर दो बार धान की खेती कर रहे हैं। मेरा मानना है कि इस जिले के अन्य क्षेत्रों में यदि अन्य किसानों को सिंचाई की बेहतर सुविधाएं मिलेंगी तो धान की पैदावार अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाएगी। वैसे, इस जिले की पैदावार प्रति हेक्टेयर 45 से 50 क्‍व‍िंटल तक है।

बदलने होंगे खेती के परंपरागत तरीके

पूर्वी सिंहभूम जिले के 40 फीसद किसान अब भी पारंपरिक तरीके से धान की खेती कर रहे हैं। अगर किसान उन्नत वैज्ञानिक बीज का उपयोग करें तो इससे भी उपज बढ़ सकती है। यह चिंता की बात है कि अब भी जिले के किसान मानसून के भरोसे ही  खेती करने को विवश हैं। पिछले वर्ष मानसून में विलंब के कारण धान की खेती देर से शुरू हुई। इस जिले से होकर गुजरने वाली नहरों से अगर सिंचाई के लिए पानी की सुविधा मिलती तो उत्पादन और बेहतर होता। साथ ही पटमदा, पोटका, बोड़ाम व गुड़ाबांधा आदि प्रखंडों में चेकडैम, तालाब और नहर बनाकर खेतों तक पानी पहुंचाया जाए तो धान का यह कटोरा दोबारा चमकने लगेगा। उपज बढऩे से किसान आत्मनिर्भर बन जाएंगे। पूर्वी सिंहभूम अन्य जिलों के लिए नजीर बन जाएगा।

मानव बल की नहीं है कमी

अच्छी बात है कि इस जिले में मानव बल की कमी नहीं है। ना ही उन्नत किस्म के बीजों की कमी है। चाकुलिया क्षेत्र में धान मिलें स्थापित होने के बाद किसानों को इसका लाभ मिल रहा था। अपने उत्पाद को वे सीधे मिलों तक पहुंचा कर मुनाफा कमा रहे थे। लेकिन, मिलें बंद होने के कारण किसान मायूस हैं। इन मिलों को भी खोलने की कवायद शुरू होनी चाहिए। राज्य सरकार को कार्ययोजना बनाने के लिए विशेषज्ञों की एक टीम बनानी चाहिए।

बोले प्रवासी मजदूर

मिल खुल जाए तो गांव छोड़कर नहीं जाना पड़ेगा : शकीला टुडू

मैं एक प्रवासी मजदूर हूं। तेलंगाना स्थित एनटीपीसी कंपनी में काम करता हूं। कोरोना के कारण जारी लॉकडाउन के दौरान काफी परेशानी उठा कर वापस लौटा हूं। यदि गांव में ही रोजगार मिल जाए तो पलायन नहीं करना पड़ेगा। चाकुलिया में चावल मिलों की भरमार है, लेकिन बंद हैं। सरकार को चाहिए कि मिलें खुलवाने की पहल करे। यहीं काम मिल जाएगा।

 चावल मिल चालू हो जाए तो रुक जाएगा पलायन : सुखलाल मुर्मू

मैं कालापाथर निवासी हूं। प्रवासी मजदूर हूं। अगर गांव के लोगों को लोकल स्तर पर या जिले के भीतर बेहतर रोजगार मिल जाए तो कोई क्यों बाहर जाएगा? घर के पास रह कर काम करना हर किसी को अच्छा लगता है। लोकल में रोजगार नहीं मिलने के चलते दूसरे प्रांतों में पलायन करना पड़ता है। यहां चावल मिल चालू हो जाए तो बेरोजगारी दूर हो जाएगी।

चावल मिलों को जिंदा करे सरकार तो नहीं जाएंगे परदेस : विक्रम किस्कू 

मैं जगन्नाथपुर निवासी हूं। प्रवासी मजदूर हूं। पहले जब चाकुलिया में चावल मिलों की संख्या अधिक थी तो ग्रामीण इलाके के अनेक लोगों को यहीं रोजगार मिल जाता था। मिलों के बंद होने से लोग बेरोजगार हो गए। पलायन करने को विवश हो गए। सरकार चाहे तो चावल मिलों को जिंदा कर ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार दे सकती है। दूसरे राज्य का मुंह नहीं देखना पड़ेगा।

 मिलें खुल जाएंगी तो पलायन भी रुक जाएगा : दासमत हेंब्रम

मैं चाकुलिया प्रखंड की कालापाथर पंचायत के रुगड़ीसोल गांव का रहने वाला हूं। प्रवासी मजदूर हूं। बेहतर रोजगार की उम्मीद में गांव-घर छोड़कर दूसरे प्रांतों में जाना पड़ता है। अगर अपने इलाके में ही रोजगार मिल जाए तो इ