*TV20 NEWS || AZAMGHARH :भारत बना दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक देश, स्वस्थ जीवन के लिए रोज़ाना 300 ग्राम सब्जी जरूरी: आहार विशेषज्ञ

आजमगढ़ 23 अप्रैल– विश्व पटल पर भारत दूसरा सबसे बड़ा सब्जी फसल उत्पादक देश है। विश्व की सकल सब्जी उत्पादन का भारी मात्रा में उत्पादन भारत में किया जाता है। वर्तमान में भारत 90 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर 18 से 20 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की दर के साथ 192 मिलियन टन से अधिक सब्जी का उत्पादन करता है। कुपोषण तथा अल्पपोषण हमारी बहुत सी आबादी के कमजोर स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण कारण है। हमारे भोजन को पौष्टिक एवं संतुलित बनाने में सब्जियों का प्रमुख स्थान है। सब्जियों से पोषक तत्व के रूप में विटामिन, खनिज लवण, कार्बाेहाड्रेट तथा अच्छे किस्म की प्रोटीन प्राप्त होती है। आहार विज्ञानियों के अनुसार एक व्यक्ति को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जियों ( 125 ग्राम हरी पत्तेदार सब्जी 100 ग्राम जड़ वाली सब्जी तथा 75 ग्राम अन्य प्रकार सब्जियों) अपने भोजन की पौष्टिक व संतुलित करने के लिए उपभोग करनी चाहिए।
देश में उत्तर प्रदेश सब्जी उत्पादन के मामले में शीर्ष पर है। उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से मटर, मिर्च, भिण्डी, टमाटर, बैंगन, फूलगोभी, पत्ता गोभी, पालक, मूली, गाजर, लौकी, करेला, खरबूज, तरबूज, कुम्हड़ा, पेठा कद्दू, नेनुआ, नसदार तोरई, कुदंरू एवं परवल आदि की खेती की जाती है। प्रदेश सरकार द्वारा दी गई सुविधा से विगत वर्षों में छोटे एवं मझोले किसानों का रुझान सब्जी उत्पादन में काफी बढ़ा है उन्हें प्रति इकाई क्षेत्रफल में उत्पादन व लाभ अधिक मिलता है। उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट किस्मों का उपयोग, नवीनतम उत्पादन तकनीक का उपयोग, असिंचित दशा में सब्जी उत्पादन, गृहवाटिका में सब्जी उत्पादन, संरक्षित खेती एवं तुड़ाई के उपरान्त संरक्षित खेती एवं पोस्ट हार्वेस्ट मैनेजमेन्ट के प्रयोग से प्रदेश के किसानों की सब्जियों में क्षति कम हुई है। प्रदेश के किसान सब्जी उत्पादन से अपनी आय में वृद्धि कर रहे हैं। मण्डियों में किसानों को अच्छा मूल्य मिल रहा है।
नवीनतम प्रजातियों का उपयोग वैज्ञानिक द्वारा पौधशाला प्रबन्धन, उत्पादन, तकनीक, रोग एवं कीट प्रबन्धन के द्वारा सब्जी उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है। स्वस्थ पौध तैयार कर रोपण करने से सब्जी फसल की अच्छी पैदावार हो रही है।
अधिकांश सब्जी फसलों को पौध रोपण के माध्यम से उगाया जाता है। सीधे बोयी जाने वाली सब्जियों जैसे कद्दूवर्गीय फसलों की भी पौध तैयार कर उत्पादन किया जा रहा है। बीज की अधिक मात्रा लगने के कारण सीधे खेत में बोयी जाने वाली सब्जियों की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इसके अलावा असमय अंकुरण एवं फलत में देरी भी होती है। जबकि पौध तैयार कर खेती करने से आर्थिक लाभ अधिक होता है तथा देखभाल में भी आसानी होती है। बीज की बुवाई से 24 घण्टे पहले बीज को पानी में भिगोते है तत्पश्चात बुवाई करते हैं। रोपण हेतु 20-25 दिन में पौध तैयार हो जाती है। रोपण के 2-3 दिन पूर्व पौध को धूप में रखते हैं, जिससे पौधों में कठोरता आ जाती है।
सब्जी फसलों की सिंचाई में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। माइक्रोइरीगेशन सिंचाई पद्धति (ड्रिप एवं स्प्रिंकलर) का प्रयोग कर सब्जी उत्पादन पर होने वाले व्यय को कम किया जा सकता है. इस विधि में पौधों की जड़ों में बूँद बूँद पानी मिलता है, जिससे आवश्यकतानुसार पौधों को पानी की पूर्ति होती है, जिससे उत्पादन गुणवत्तायुक्त प्राप्त होता है। जरूरत पड़ने पर घुलनशील पोषक तत्व और रसायनिक खाद भी पानी में घोलकर पौधों की जड़ों तक पहुँचायी जा सकती है। इस विधि से 30-60 प्रतिशत पानी की बचत के साथ ही साथ उपज में वृद्धि तथा गुणवत्ता में सुधार भी होता है साथ ही खरपतवार का भी नियंत्रण होता है।
खेतों में बुवाई के तुरन्त बाद पौधों के जड़ क्षेत्रों की भूमि सतह को कार्बनिक पदार्थ या प्लास्टिक सीट से ढक दिया जाता है। यह प्रक्रिया भूसा, पुवाल, राख, धान भूसी, 7-10 माइकान मोटाई की काली सफेद रंग वाली प्लास्टिक की चादर से किया जाता है। पलवार के प्रयोग से नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण, गुणवत्ता में सुधार, मृदा तापक्रम पर नियंत्रण तथा कीट व्याधियों का प्रकोप कम होता है।
कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती हेतु मचान विधि का प्रयोग करने से फलों की गुणवत्ता एवं उपज बढ़ जाती है तथा रोगों एवं कीटों के प्रबंधन में भी सुविधा होती है। अगेती एवं खेती का प्रयोग कर फसलों का अगेती खेती कर मुख्य समय से पहले उत्पादन प्राप्त करके कृषक बाजार में अधिक आय प्राप्त कर रहे हैं। संरक्षित खेती के अन्तर्गत ग्रीन हाऊस शेडनेट हाऊस, लोटनल, पाली हाऊस की स्थापना कर अगेती एवं ऑफ सीजन वाली सब्जी जैसे-शिमला मिर्च, टमाटर, धनिया, खीरा, मूली, गाजर, कडूकुल की सब्जियों आदि का उत्पादन किया जा रहा है।
वर्तमान में मानव स्वास्थ्य हेतु सुरक्षित खाद्य उत्पाद के रूप में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में जैविक विधियों से उत्पादित फलों एवं सब्जियों की माँग तेजी से बढ़ रही है। जैविक खेती का मुख्य उद्देश्य मृदा, पौधों, पशुओं एवं मनुष्य के स्वास्थ्य को ध्यान रखते हुए फसलों की उत्पादकता को बढ़ाना है। जैविक खादों के प्रयोग से सब्जियों में विटामिन एवं खनिज तत्वों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है। इसमें मुख्य रूप से विभिन्न जीवाणु खाद जैसे-एसीटोबैक्टर, एजोस्पाइरिलम, घुलनशील फास्फेट एवं सूक्ष्म जीव का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा राइजोबियम कल्चर का प्रयोग दलहनी सब्जी फसल में गुणवत्ता एवं उपज को बढ़ा देती है। जैविक खादों का प्रयोग मृदा एवं बीज में मिलाकर किया जाता है।
सब्जियाँ एक निश्चित क्षेत्रफल में अन्य फसलों की तुलना में अधिक उपज देती है अतः अच्छी उपज लेने के लिए पोषक का संतुलित प्रयोग किया जाना आवश्यक होता है। पौधों की वृद्धि एवं समुचित विकास के लिए 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता है। इनमें से तीन तत्व कार्बन, हाइड्रोजन एवं आक्सीजन को पौधे पानी तथा वायुमण्डल से लेते हैं जबकि शेष 13 पोषक तत्व स्वयं ग्रहण करते हैं। जिसमें नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश प्रमुख आवश्यक तत्व होते हैं। जिसकी पूर्ति उर्वरक के माध्यम से होता हैं। खेत की मिट्टी का परीक्षणोपरान्त संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों का न केवल मृदा स्वास्थ्य बल्कि उत्पादन लागत में भी कमी के साथ-साथ फसल की आनुवांशिक क्षमता के अनुरूप गुणवत्तायुक्त उत्पादन तथा उत्पादकता भी प्राप्त होता है।