कैफी आज़मी पर विशेष

संवाददाता- वीरेंद्र यादव,फूलपुर

कैफी आजमी का जन्म उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में मेज़वा गांव में 14 जनवरी 1919 हुआ​ था। उनका पूरा नाम सैयद अतहर हुसैन रिजवी यानी कैफी आजमी था। उन्होंने अपने लेखन के जरिए खूब नाम कमाया। कैफी आजमी ज्यादातर प्रेम की कविताएं लिखने के लिए जाने जाते थे। इसके अलावा वह बॉलीवुड गीत, पटकथा लिखने में माहिर थे। उन्होंने महज 11 साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी थी। आपको बता दें कि शायराना मिजाज के कैफी आजमी 1942 में हुए महात्मा गांधी के भारत छोड़ा आंदोलन से काफी प्रेरित थे। जितना कैफी आजमी की शायरियां, गीत और कविताएं दिलचस्प रही हैं उतना ही उनकी और शौकत आजमी की प्रेम कहानी।मई 1947 में इनका विवाह शौकत से हुआ। आर्थिक रूप से संपन्न और साहित्यिक संस्कारों वाली शौकत को कैफी के लेखन ने प्रभावित थीं। उनके यहाँ एक बेटी और एक बेटे का जन्म हुआ, जिनका नाम शबाना और बाबा है। शबाना आज़मी हिंदी फिल्मों की एक अज़ीम अदाकारा बनीं।
कुछ मुख्य शायरी:
उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे,

क़द्र अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं,

तुझमें शोले भी हैं बस अश्क़ फिशानी ही नहीं,

तू हक़ीकत भी है दिलचस्प कहानी ही नहीं,

तेरी हस्ती भी है इक चीज़ जवानी ही नहीं,

अपनी तारीख़ का उन्वान बदलना है तुझे,

उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे,’
है कली-कली के रुख पर तेरे हुस्न का फसाना…(लालारूख)
वक्त ने किया क्या हसीं सितम… (कागज के फूल)
इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कुराना… (शमा)
जीत ही लेंगे बाजी हम तुम… (शोला और शबनम)
तुम पूछते हो इश्क भला है कि नहीं है।.. (नकली नवाब)
राह बनी खुद मंजिल… (कोहरा)
सारा मोरा कजरा चुराया तूने… (दो दिल)
बहारों…मेरा जीवन भी सँवारो… (आखिरी khत)
धीरे-धीरे मचल ए दिल-ए-बेकरार… (अनुपमा)
या दिल की सुनो दुनिया वालों… (अनुपमा)
मिलो न तुम तो हम घबराए… (हीर-रांझा)
ये दुनिया ये महफिल… (हीर-रांझा)
जरा सी आहट होती है तो दिल पूछता है।.. (हकी
ये सोच के उसके दर से उठा था।..(हकीकत)
है कली-कली के रुख पर तेरे हुस्न का फसाना…(लालारूख)
वक्त ने किया क्या हसीं सितम… (कागज के फूल)
इक जुर्म करके हमने चाहा था मुस्कुराना… (शमा)
जीत ही लेंगे बाजी हम तुम… (शोला और शबनम)
तुम पूछते हो इश्क भला है कि नहीं है।.. (नकली नवाब)
राह बनी खुद मंजिल… (कोहरा)
सारा मोरा कजरा चुराया तूने… (दो दिल)
बहारों…मेरा जीवन भी सँवारो… (आखिरी रास्ता)
धीरे-धीरे मचल ए दिल-ए-बेकरार… (अनुपमा)
या दिल की सुनो दुनिया वालों… (अनुपमा)
मिलो न तुम तो हम घबराए… (हीर-रांझा)
ये दुनिया ये महफिल… (हीर-रांझा)
जरा सी आहट होती है तो दिल पूछता है।.. (हकीकत)