आजमगढ़ : गन्ना फसल की सुरक्षा एवं प्रबंधन हेतु भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के अनुसार कृषकों के लिए जारी की एडवाइजरी

ब्यूरो रिपोर्ट 

प्रदेश के आयुक्त, गन्ना एवं चीनी, संजय आर0 भूसरेड्डी ने गन्ना कृषकों के हितों के दृष्टिगत मौसम के उतार-चढ़ाव के दौरान गन्ना फसल की सुरक्षा एवं प्रबंधन हेतु भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा दिये गये सुझावों के अनुसार कृषकों के लिए एडवाइजरी जारी की है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हुए श्री भूसरेड्डी ने बताया कि प्रदेश के अधिकांश कृषकों द्वारा नकदी फसल होने के कारण गन्ने की खेती विस्तृत क्षेत्रफल में की जाती है। प्रतिवर्ष गन्ने की खेती में वर्षा के कारण जल-भराव, बाढ़ अथवा सूखा पड़ने के कारण गन्ने की बुवाई, निराई-गुड़ाई आदि में व्यवधान उत्पन्न होता है, इसलिए गन्ना फसल के प्रबंधन एवं सुरक्षा के उपायों को अपनाकर मौसम के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है।
गन्ना आयुक्त ने बताया कि जिन क्षेत्रों में सूखा पड़ने की आशंका हो अथवा वर्षा ऋतु में लंबी अवधि तक वर्षा न हो ऐसे क्षेत्रों में सूखा सहने की क्षमता से युक्त सूखा रोधी किस्मो यथा कोलख 94184, को लख 12209, को शा 08279 आदि किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। गन्ने की फसल में गन्ने की पताई अथवा पुआल का बिछावन पंक्तियों के बीच में डालने से भी बार-बार सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती। टपक सिंचाई अथवा छिड़काव विधि को अपनाने से पानी की बचत के साथ-साथ अधिक उपज भी प्राप्त होती है। यदि सूखे की अवस्था में गन्ने की पत्तियां मुरझाने लगी हो तो जीवन रक्षक सिंचाई करने से पहले पोटाश उर्वरक का पानी में 5 प्रतिशत घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करने से सूखे का हानिकारक प्रभाव कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि जलभराव की स्थिति में जल प्लावित क्षेत्रों हेतु संस्तुत किस्मों यथा-को लख 94184, को से 9530, को से 96436, को लख 12207 आदि की ही बुवाई करनी चाहिए। जलप्लावन ग्रस्त क्षेत्रों में गन्ने की शरद कालीन बुवाई उत्तम है, किन्तु शरद कालीन बुवाई संभवन होने पर बसन्त काल में गन्ने की अगेती बुवाई करनी चाहिए। बुवाई से पूर्व कार्बेण्डाजिम के 0.2 प्रतिशत घोल में 20 मिनट तक डुबोकर गन्ना बीज का उपचार करके गन्ने की बुवाई ट्रेंच विधि से करनी चाहिए तथा उर्वरकों का प्रयोग वर्षा ऋतु से पहले अवश्य कर लें। जल भराव के बाद की खड़ी फसल में पोटाश के 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव करने से फसल की वृद्धि होती है तथा कीटों एव रोगों का प्रकोप कम होता है। जल निकास की व्यवस्था होने पर जून माह के मध्य तक गन्ने की पंक्तियों पर मिट्टी अवश्य चढ़ा दें, जिससे जल निकासी के लिए नालियाँ बन जाती हैं तथा गन्ना फसल गिरने से बच जाती है। एक खेत का पानी दूसरे खेत में जाने से रोकना आवश्यक है अन्यथा लाल सड़न रोग का प्रकोप होने पर पूरे क्षेत्र में रोग फैलने की आशंका रहती है। जलप्लावित क्षेत्र में पानी सूखने के बाद गन्ना फसल को शीघ्र ही चीनी मिल अथवा खाण्डसारी इकाई को आपूर्ति करें।
गन्ना आयुक्त ने एडवाइजरी में वर्णित गन्ने की खेती के प्रबंधन एवं सुरक्षात्मक उपायों के फ्लेक्स बनवाकर चीनी मिल गेट, विभागीय कार्यालयों पर लगाने तथा हैंडबिल्स, वॉल पेन्टिग एवं दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से गन्ना कृषकों के मध्य व्यापक प्रचार-प्रसार कराने हेतु विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया है।