70 के दशक में हैजा भी महामारी के रूप में पूरे विश्व में फैला था, तब अमेरिका में किसी ने #ओशो रजनीश जी से प्रश्न किया
-“इस महामारी से कैसे बचे ?”
ओशो ने विस्तार से जो समझाया वो आज कोरोना के सम्बंध में भी बिल्कुल प्रासंगिक है।
#ओशो
“यह प्रश्न ही आप गलत पूछ रहे हैं,
प्रश्न ऐसा होना चाहिए था कि महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है उसके सम्बन्ध में कुछ कहिए!
इस डर से कैसे बचा जाए…?
क्योंकि #वायरस से बचना तो बहुत ही आसान है,
लेकिन जो #डर आपके और दुनिया के अधिकतर लोगों के भीतर बैठ गया है, उससे बचना बहुत ही मुश्किल है।
अब इस महामारी से कम लोग, इसके डर के कारण लोग ज्यादा मरेंगे…….।
’डर’ से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कोई भी वायरस नहीं है।
इस डर को समझिये,
अन्यथा मौत से पहले ही आप एक जिंदा लाश बन जाएँगे।
यह जो भयावह माहौल आप अभी देख रहे हैं, इसका वायरस आदि से कोई लेना-देना नहीं है।
यह एक सामूहिक पागलपन है, जो एक अन्तराल के बाद हमेशा घटता रहता है, कारण बदलते रहते हैं, कभी सरकारों की प्रतिस्पर्धा, कभी कच्चे तेल की कीमतें, कभी दो देशों की लड़ाई, तो कभी जैविक हथियारों की टेस्टिंग!!
इस तरह का सामूहिक पागलपन समय-समय पर प्रगट होता रहता है। व्यक्तिगत पागलपन की तरह कौमगत, राज्यगत, देशगत और वैश्विक पागलपन भी होता है।
इस में बहुत से लोग या तो हमेशा के लिए विक्षिप्त हो जाते हैं या फिर मर जाते हैं ।
ऐसा पहले भी हजारों बार हुआ है, और आगे भी होता रहेगा और आप देखेंगे कि आने वाले बरसों में युद्ध तोपों से नहीं बल्कि जैविक हथियारों से लड़ें जाएंगे।