आजमगढ़। आल इंडिया माइनॉरिटी ओबीसी फेडरेशन के उत्तर प्रदेश महासचिव डॉ. मो. आकिब ने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में बताया कि आज़ादी बाद जैसे-जैसे समय बदलता गया वैसे-वैसे देश का मुसलमान हासिए पे जाता रहा। मुसलमानो के नाम पर कुछ चेहरों को आगे करके ओहदा देकर पूरे मुस्लिम समाज को तरक्की नाम पर छला जा रहा। आप देश के सभी सेक्युलर और कम्युनल पार्टियों के संगठन और सरकार मे आँकड़े खुद देख सकते हैं कि हमे अपनी आबादी और वोट देने के हिसाब से 20 प्रतिशत भी हिस्सेदारी नहीं मिलती। एक तरफ राजनीतिक पार्टियां मुसलमानों को जोड़ने और उनकी तरक़्की के लिए तरह-तरह के बाते करती रहीं और वहीं दूसरी तरफ मुसलमानो के सामाजिक हालात को बदलने के लिए रंगनाथ मिश्रा तथा सच्चर कमेटी की सिफारिश को नज़रअंदाज किया जाता है।
इन दोनो कमेटियों की रिपोर्ट मे साफ-साफ लिखा गया है कि मुसलमानो का एक बड़ा तबका या पसमांदा मुसलमानो की हालात दलितों से भी बदतर है और रिपोर्ट में सिफारिश की गयी है कि 8.44 प्रतिशत कोटा अलग से रिज़र्व करके आरक्षण का प्रावधान किया जाए। अगर इन दोनो कमेटियों की सिफारिश लागू कर दी जाए तो मुस्लिम मसीहा,मुस्लिम हमदर्द नाम के चेहरो की देश मे जरूरत हो नही पड़ेगी और न ही ये पार्टियाँ व नेता देश के शांतिप्रिय माहौल को संप्रदायिकता की ओर कर पाएँगे। देश के तमाम मुसलमानो की समाजी, सियासी और आर्थिक दशा अपने आप बेहतर हो जाएगी।
राजनीतिक पार्टियाँ व सामाजिक न्याय के नाम पर बने संगठनो ने इस मुद्दे पर दूरी बनाने की वजह उनका संकीर्ण सोंच है। देश में बहुत सी पिछड़ी मुस्लिम-तंजीमो व जागरूक मुसलमानो के आवाज़ उठाने पर महज़ कुछ ही प्रदेशों मे जैसे बिहार, कर्नाटका, केरला और पश्चिम बंगाल में कमोबेश आरक्षण दिया गया है वो भी आबादी के लिहाज से नही। देश के मुसलमानो को सोंचने की जरूरत है कि उनके तरक्की का रास्ता समाजी और सियासी बेदारी के बिना महज एक धोखा है।