दाल-चावल की रूहों के एकाकार होने पर रचे गए जादूई व्यंजन का नाम है खिचड़ी !
सीधी-सादी, भोली-भाली खिचड़ी जिसकी पहचान न तो पूरब से है न पश्चिम से , न उत्तर से है न दक्षिण से .
इसका स्वाद हर हिंदुस्तानी के दिल पर राज करता है !
खिचड़ी का इतिहास भी बहुत पुराना है .आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के एक सर्वे में प्रमाण मिले हैं कि 1200 ईस्वी से पहले से ही भारतीय लोग दाल-चावल को मिला कर खाया करते थे।
भगवान जगन्नाथ, भगवान बद्रीनाथ को चढ़ने वाला प्रसाद, संक्रात पर मंस कर बंटने वाली , हम सबकी प्यारी ,दुलारी, स्वाद और सुगंध से भरी हरी-भरी सी खिचड़ी सभी को न्यारी लगती है.
खिचड़ी शब्द मूल रूप से संस्कृत के शब्द ‘खिच्चा’ से लिया गया है है, जिसका अर्थ है चावल और दालों को मिलाकर बनाया गया व्यंजन. मूंग, उडद,मसूर,अरहर दाल और चावल के अलावा साबूदाना, बाजरा और दलिया मिलाकर भी खिचड़ी बनाई जाती है! सब्जियां और मसाले भी अपने स्वाद के हिसाब से जो चाहे डाले जाते हैं!
यह एकमात्र ऐसा व्यंजन है न तो बनाने में झंझट, न परोसने में , न खाने में और न ही पचाने में !
खिचड़ी से एक बार जिसने इश्क फरमा लिया उसका किसी और व्यंजन से दिल लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
मुझे तो ये भी लगता है कि किसी व्यक्ति के स्वभाव को जानना हो तो पहले उससे खिचड़ी की पसंद-नापसंद के विषय में पूछ लिया जाना चाहिए. यदि पसंद हुई तो मतलब वह व्यक्ति उसी की तरह एकदम सीधा-साधा सबसे हिल-मिल कर रहने वाला है!
बीमार हों या गरिष्ठ भोज्य पदार्थ खा-खा कर कब्ज़ , गैस , खट्टी डकारों या एसिडिटी के मारे हों, खिचड़ी हमारे दिल और पेट दोनों को ही प्यार से सहला कर दुलार कर फिर से व्यंजनों की दुनिया में लौटने की शक्ति प्रदान करती है. जैसे कोई बच्चा हाँफ-काँप , थकहार कर माँ की गोद में सिर रख कर फिर से एक नई उर्जा पाता है , ठीक उसी प्रकार खिचड़ी भी हमारी उखड़ी-बिगड़ी तबीयत को फिर से अपनी ही तरह हरा-भरा कर देती है.
यूं तो खिचड़ी में स्वयं में ही इतना सामर्थ्य है कि आपको अपने स्वाद का कायल कर दे , लेकिन अक्सर इसके साथ पापड़ , अचार, रायता, दही , घी का बेहतर संयोजन होता है.
अचार भी मौसम के हिसाब से इसका दोस्त बनता पाया जाता है . कभी आम तो कभी नींबूं , कभी मिर्च ,हींग तो कभी गाजर और गोभी का !
खिचड़ी के सरल स्वभाव के चलते इसके अनगिनत मित्र बन जाते हैं .जैसे दही जो कभी थक्का, कभी जीरा छुंका रायता या मट्ठा बन इसके साथ हिलमिल कर यारियां निभाती है!
प्याज़, नींबू , हरी मिर्च , रचा अदरक भी स्वाद और मौसम के अनुसार इसके संग रास रचाने को तैयार रहते हैं !
कहते हैं जीवन में थोड़ी कुरकुराहट न हो तो मज़ा नहीं आता , तो खिचड़ी के संग पापड़ की यारी भी बहुत प्रसिद्ध है. फिर चाहे तला हुआ हो या भुना हुआ हो , खिचड़ी के साथ स्वाद दुगुना होने की पूरी गारंटी है !
खिचड़ी की महिमा केवल इंसानों की स्वाद-इंद्रियों तक ही नहीं थमती बल्कि उससे आगे बढ़कर यह राष्ट्रीय,अंतराष्ट्रीय, राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक संबंधों के बीच भी पकाई जाती है.
फिर खिचड़ी चाहे बीरबल की हो, दुश्मन और दोस्त पड़ोसी देशों की हो, विपक्षी विधायकों और सत्ताधारी दलों के बीच की हो, दोस्तों के बीच पकने वाली हो या फिर माँ-बेटी,पिता-पुत्र, सास-बहु, देवर-भाभी, जीजा-साली, मालिक-नौकर, राजा-प्रजा ,भक्त-ईश्वर के बीच की हो. खिचड़ी की महिमा से जो अनिभिज्ञ रहे उनकी जीवन नैया जब आपसी खिचड़ी सही से न पकने पर मंझधार में फंसती है तो फिर उसे भगवान भी पार नहीं लगा सकते !
क्योंकि ये आपसी संबंधों वाली खिचड़ी यदि सही से न पके तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं!
और पक भी जाए तो जो जितना घी डालकर खाए, उतना ही मज़ा आएगा और वह व्यक्ति उतना ही फायदे में रहेगा!
वरना हींग और जीरे का छौंक कितनी खुशबू देगा ये तो आस-पड़ोस वालों की ईर्ष्या देखकर ही पता चल जाएगा!
और हां खिचड़ी एक टेलिविजन धारावाहिक के रूप में अवतरित होकर हमें यह भी सिखा चुकी है कि हंसा और प्रफुल जैसा परिवार जिस प्रकार मेलजोल से रहता है उसी प्रकार हर परिवार को खिचड़ी जैसा ही रहना चाहिए !
काश हम सब भी खिचड़ी जैसा बन सकें जो सबमें समाहित होने और सबको स्वयं में समाहित करने का ईश्वरीय गुण रख सके !
बाकि 2017 में ब्रांड इंडिया फूड के रूप में चुनी गई खिचड़ी को पकाते-खाते बस यह मंत्र याद रखें –
खिचड़ी के होते चार यार
घी, दही, पापड़ और अचार !
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं.