लखनऊ। उत्तर प्रदेश के रजिस्टर्ड कारखानों में वयस्क श्रमिकों से कुछ शर्तों के साथ एक दिन में 12 घंटे तक काम लेने संबंधी छूट की अधिसूचना को योगी सरकान ने हफ्ते भर बाद ही निरस्त कर दिया है। अधिसूचना को निरस्त किये जाने से कारखानों में श्रमिकों से काम कराने की अवधि रोजाना अधिकतम आठ घंटे और हफ्ते में 48 घंटे हो गई है। बता दें कि शासन की इस अधिसूचना को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल हुई थी। याचिका पर अगली सुनवाई 18 मई को होनी है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने छह मई को प्रदेश में स्थापित कारखानों और मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को प्रदेश में लागू श्रम अधिनियमों से तीन वर्ष की सशर्त छूट देने के लिए अध्यादेश के मसौदे को मंजूरी दी थी। वहीं आठ मई को श्रम विभाग ने कारखानों में श्रमिकों से कुछ शर्तों के साथ एक दिन में 12 घंटे और हफ्ते में 72 घंटे तक काम लेने के बारे में अधिसूचना जारी की थी। बाद में सरकार ने अध्यादेश के प्रारूप में बदलाव करते हुए नये कारखानों और उद्योगों तथा पुरानी इकाइयों के नये कामगारों को ही श्रम कानूनों से छूट देने का प्रावधान किया।
इस बीच श्रम संगठनों ने हाई कोर्ट में आठ मई की अधिसूचना के खिलाफ याचिका दाखिल कर दी। याचिका में कहा गया है कि कारखाना अधिनियम की जिस धारा-5 के तहत यह अधिसूचना जारी की गई, वह असंवैधानिक है। लिहाजा इस धारा का इस्तेमाल कर जारी की गई अधिसूचना भी असंवैधानिक है। उधर शासन स्तर पर भी विचार हुआ कि जब सरकार अध्यादेश ला रही है तो अलग से अधिसूचना जारी करने का औचित्य नहीं है। लिहाजा शासन ने अधिसूचना को शुक्रवार को निरस्त कर दिया है। प्रमुख सचिव श्रम सुरेश चंद्रा ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य स्थायी अधिवक्ता को शुक्रवार को पत्र लिखकर आठ मई को जारी की गई अधिसूचना को निरस्त किये जाने की जानकारी दे दी है।
हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य को दिया है नोटिस
इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करके उत प्रदेश के श्रम विभाग की श्रमिक अधिकारों को निलंबित करने की अधिसूचना व संशोधन कानून की वैधता की चुनौती दी गई है। कोर्ट ने याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका पर सुनवाई 18 मई को होगी। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने यूपी वर्कर्स फ्रंट की जनहित याचिका पर दिया है। राज्य सरकार ने फैक्ट्री कानून में श्रमिक अधिकारों को निलंबित करने की अधिसूचना जारी की थी। इस कानून से फैक्ट्री मालिकों को 12 घंटे काम लेने की अनुमति मिल गई है। याची का कहना था कि यह श्रमिकों के जीवन के मूल अधिकारों एवं श्रम कानूनों का उल्लंघन है। इससे अधिक मुनाफे के लिए श्रमिकों का शोषण किया जाएगा। साथ ही उनकी नौकरी की गारंटी नहीं होगी।