नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों को महाराष्ट्र से सुरक्षित उत्तर प्रदेश में उनके घर पहुंचाए जाने की मांग से जुड़ी याचिका पर केंद्र, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा है। वहीं दूसरी ओर देश भर में सड़क पर पैदल चल रहे प्रवासी मजदूरों के हादसों का शिकार होने के मामले में दाखिल याचिका पर अदालत ने विचार करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा कि वह पैदल चल रहे मजदूरों को कैसे रोक सकता है या कैसे उनकी निगरानी कर सकता है। यह काम सरकार का है और वह ही उनके आने जाने की व्यवस्था देखेगी।
उक्त आदेश न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने प्रवासी मजदूरों का मसला उठाने वाले दो अलग अलग मामलों में दिए। एक याचिका मुंबई के वकील सगीर अहमद खान ने दाखिल की है जिसमें महाराष्ट्र से प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित उत्तर प्रदेश में उनके घर भिजवाने की मांग की गई है। इतना ही नहीं याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश में बस्ती और संत कबीर नगर के प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए उनके किराए के लिए 25 लाख रुपए देने की भी पेशकश की है।
सुनवाई के दौरान शुक्रवार को वकील ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कोई भी नोडल अधिकारी नहीं है जिससे संपर्क किया जा सके। अदालत में केंद्र सरकार की ओर से मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने का इंतजाम कर रही है। श्रमिक ट्रेनें चलाई जा रही हैं। स्थानीय स्तर पर नोडल अधिकारी इंतजाम देखने के लिए नियुक्त किए गए हैं। शीर्ष अदालत ने दोनों पक्ष की दलीलें सुनने के बाद सरकार को नोटिस जारी करते हुए इंतजामों के बारे में बताने को कहा है।
इसके अलावा वकील अलख आलोक श्रीवास्तव की ओर से दाखिल एक याचिका में देशभर में अलग अलग जगह सड़क पर पैदल चलते मजदूरों और विभिन्न हादसों में उनके जान गवांने का विषय उठाया गया है। शीर्ष अदालत ने याचिका पर कहा कि आपकी जानकारी का स्रोत सिर्फ अखबारों में आई खबरें हैं। पीठ ने कहा कि कोर्ट उन्हें पैदल चलने से कैसे रोक सकता है। कोर्ट उनकी निगरानी कैसे कर सकता है। ये काम सरकार का है। सरकार व्यवस्था देखेगी। इस पर तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने मजदूरों के घर पहुंचने के इंतजाम किए हैं फिर भी लोग अपनी बारी का इंतजार किए बगैर पैदल चल रहे हैं। उन्हें रोका जाना मुश्किल है। जबरदस्ती से रोके जाने का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। अदालत ने इस याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए इसे खारिज कर दिया।