कई राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव कर खोले हैं प्रवासी मजदूरों के लिए गांव में रोजगार के द्वार

हाल में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं। इस बदलाव की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की। इसी के साथ उन्होंने कहा कि वह न केवल देश भर में फैले राज्य के सभी प्रवासी मजदूरों को वापस लाएंगे, बल्कि उन्हें रोजगार भी दिलाएंगे। राज्य में तीन वर्षों तक श्रम कानूनों को निलंबित किया जाना भी प्रशासन की इसी तैयारी का हिस्सा मालूम पड़ता है ताकि लौटकर आने वाले ये कामगार किसी काम-धंधे में खप सकें। माना जा रहा है कि करीब दो करोड़ ऐसे श्रमिक उत्तर प्रदेश लौटेंगे जिनके लिए रोजगार की भी कुछ व्यवस्था करनी होगी। कई लबालब भरी रेलगाड़ियों में तमाम मजदूरों की तो वापसी हो भी चुकी है। उत्तर प्रदेश के साथ अन्य राज्यों में भी बड़ी संख्या में मजदूर लौट रहे हैं

यूक्रेन का गेहूं तुर्की की मिलों से होकर चीन भेजा जाता है, जहां इससे नूडल्स बनाए जाते हैं

आपने शायद कभी इस पर गौर न किया हो, लेकिन किसी खेत से आपकी थाली तक भोजन उपलब्ध कराने के पीछे बाकायदा एक पूरी कड़ी काम करती है। यह कड़ी है वैश्विक खाद्य आपूर्ति शृंखला जिसे कूट भाषा में जीएफएससी भी कहा जाता है। वैश्विक जीडीपी में इसका 10 प्रतिशत हिस्सा है और करीब 150 करोड़ लोग इसमें कार्यरत हैं। इसे ऐसे समझ सकते है कि यूक्रेन के खेतों में जो गेहूं उगता है वह तुर्की की मिलों में जाता है। वहां से उसे चीन भेजा जाता है, जहां उससे नूडल्स बनाए जाते हैं जो उसका प्रमुख आहार माना जाता है।

खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित

दुनिया की अस्सी प्रतिशत आबादी के खानपान का कुछ न कुछ हिस्सा किसी दूसरे देश से अवश्य आता है। इसी शृंखला के कारण हम अकाल, बाढ़ और महामारियों के बावजूद भुखमरी को लगभग मात देकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर पाए हैं। आपूर्ति में स्थायित्व और संपूर्ण भारत में अनाजों की कीमत में एकरूपता भी आर्पूित शृंखला के कारण ही संभव हुई है।

देश के कुल गेहूं का 35 फीसद और धान का 16 फीसद हिस्सा उप्र में होता है

उत्तर प्रदेश मुख्य रूप से कृषि केंद्रित राज्य है। गंगा के उपजाऊ मैदान का एक बड़ा हिस्सा यहीं पड़ता है। देश के कुल गेहूं का 35 फीसद और धान का 16 फीसद हिस्सा उप्र में होता है। राज्य की 55 फीसद से अधिक आबादी कृषि कार्यों में संलग्न है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत 15.87 प्रतिशत है। प्रदेश में पानी प्रचुर मात्रा में है। यहां प्राचीन और लंबी नहर प्रणाली मौजूद है। दिल्ली-आगरा, आगरा-लखनऊ,लखनऊ-गाजीपुर (निर्माणाधीन) और दिल्ली-मेरठ जैसे एक्सप्रेसवे के रूप में बढ़िया कनेक्टिविटी भी है। रेलवे नेटवर्क की पैठ भी गहरी है।

कृषि को उद्योग के रूप में बदलने की राह में होंगी अड़चनें दूर

सूबे के अधिकांश शहर वायु मार्ग से जुड़े हैं। ये सभी पहलू आपूर्ति शृंखला की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने वाले हैं। कुछ यही स्थिति अन्य राज्यों की है। ऐसे में श्रम कानूनों को कुछ समय के लिए निलंबित करके एक साथ कई लक्ष्य हासिल होते दिख रहे हैं। एक तो इससे कृषि को औपचारिक उद्योग के रूप में बदलने की राह में अड़चनें दूर होंगी तो उसमें पूंजी निवेश भी बढ़ेगा।

प्रवासी श्रमिकों को श्रम कानूनों के तहत संरक्षण का लाभ नहीं मिलता

कुछ अव्यावहारिक अर्थशास्त्री और समाज विज्ञानी नेताओं ने राज्यों में श्रम कानूनों के मोर्चे पर इस बदलाव के खिलाफ आवाज बुलंद की है। मेरे विचार में श्रमिकों की सुरक्षा का सवाल ही तभी पैदा होता है जब तमाम लोगों को रोजगार मिल सके और यदि श्रम कानूनों ने ही बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की राह बाधित कर रखी हो तो इनकी विदाई में ही भलाई है। प्रवासी श्रमिकों को श्रम कानूनों के तहत किसी संरक्षण का कोई लाभ नहीं मिलता। इसके असल लाभार्थी संगठित क्षेत्र के कर्मचारी हैं जो कुल कामकाजी आबादी का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं।

आर्थिक वृद्धि से मिले राजस्व से आर्थिक सुरक्षा की दीवार बनाई जाए

भारत में श्रम कानूनों ने बिगाड़ का ही काम किया है। इसका विकल्प यही है कि आर्थिक वृद्धि से मिले राजस्व से आर्थिक सुरक्षा की दीवार बनाई जाए। वास्तव में इस फैसले का फायदा उन प्रक्रियाओं को तेजी देने में करना चाहिए जिन परियोजनाओं का पहले ही एलान हो चुका है। इनमें रक्षा उत्पादन कॉरिडोर से लेकर मैन्यूफैक्चरिंग हब तक शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश में आलू और चीनी जैसे जिंसों के लिए सुगठित मंडियां मौजूद हैं

उत्तर प्रदेश में आलू और चीनी जैसे जिंसों के लिए सुगठित मंडियां मौजूद हैं। इन मंडियों वाले शहर किसी न किसी तरह एक्सप्रेसवे से जुड़े हुए भी हैं। ऐसे में सरकार को सोर्सिंग, सैंपलिंग, स्टोरिंग और प्रोसेसिंग जैसी प्रक्रियाओं के लिए इनके इर्दगिर्द सप्लाई चेन पार्क बनाने चाहिए। इनमें जमीन के अलावा बिजली जैसी सुविधाओं का इंतजाम सरकार करे। यही काम अन्य राज्यों को भी करना होगा।

भीमकाय कंपनियां अपनी इकाइयों का विविधीकरण करना चाहती हैं

करगिल, अमेरिकन एडीएम और अमेजन जैसी दुनिया की तमाम दिग्गज कंपनियां वैश्विक खाद्य आपूर्ति शृंखला से जुड़ी हुई हैं। इस बाजार में इन सभी की अच्छी-खासी हिस्सेदारी है। ये भीमकाय कंपनियां अपनी इकाइयों का विविधीकरण करना चाहती हैं ताकि किसी गतिरोध की स्थिति में अपना जोखिम कम कर सकें। ये कंपनियां अपने साथ तकनीक, कौशल और वे सभी क्षमताएं भी लाएंगी जिनसे उत्पादन का बड़ा केंद्र विकसित करने की राह में आने वाली लागत जैसी सभी बाधाएं दूर होंगी। इन केंद्रों में सक्रिय छोटे एवं मझोले उद्योग अपने दम पर लागत की इन बाधाओं से पार नहीं पा सकते। ये वैश्विक दिग्गज न केवल वित्तीय पूंजी लगाएंगे, बल्कि कृषि को आधुनिक बनाकर उसे वैश्विक प्रतिस्पर्धी आर्पूित शृंखला में मुकाबले के लिए भी तैयार करेंगे।

अनुबंध खेती और कृषि भूमि को पट्टे पर देने के लिए कानून बनाने चाहिए

राज्य सरकारों को अनुबंध खेती और कृषि भूमि को पट्टे पर देने के लिए तत्काल आधार पर कानून बनाने चाहिए। इससे छितराई हुई छोटी जोतों की समस्या से मुक्ति मिलेगी और कृषि उद्योग का निगमीकरण संभव हो सकेगा। ज्यादातर खेतिहर आबादी के पास एक एकड़ से भी कम जमीन है। इससे खेती उनके लिए र्आिथक रूप से लाभप्रद नहीं रह जाती।

किसानों की आमदनी पांच साल से दोगुनी की जा सकती है

जनसांख्यिकी, आर्थिक वृद्धि, प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी, बढ़ती आकांक्षाएं, महामारियों के बढ़ते चलन के कारण शाकाहार की ओर रुझान दर्शाते हैं कि अगले 30 वर्षों में खाद्य आपूर्ति शृंखला कारोबार कम से कम 50 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा ताकि अमीर आबादी की जरूरतें पूरी की जा सकें। इस आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बनकर मिलने वाली सफलता से किसानों की आमदनी पांच साल से भी कम में दोगुनी की जा सकती है। इससे लाखों रोजगारों के द्वार भी खुलेंगे। तमाम लोगों की आर्थिक दुश्वारियां दूर होंगी। साथ ही साथ इससे प्रवासी मजदूरों की समस्याओं का भी हमेशा के लिए समाधान मिल जाएगा।