काठमांडू: भारत के साथ सीमा विवाद के बीच नेपाल के कैबिनेट ने एक नया राजनीतिक मानत्रिच स्वीकार किया है जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाली क्षेत्र में दर्शाया गया है। विदेश मंत्री प्रदीप कुमार गयावली ने इस कदम की घोषणा से हफ्तों पहले कहा था कि कूटनीतिक पहलों के जरिए भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयास जारी हैं। नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के सांसदों ने कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख को नेपाल की सीमा में लौटाने की मांग करते हुए संसद में विशेष प्रस्ताव भी रखा था।
लिपुलेख दर्रा नेपाल और भारत के बीच विवादित सीमा, कालापानी के पास एक दूरस्थ पश्चिमी स्थान है। भारत और नेपाल दोनों कालापानी को अपनी सीमा का अभिन्न हिस्सा बताते हैं। भारत उसे उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा बताता है और नेपाल इसे धारचुला जिले का हिस्सा बताता है। गयावली ने कहा कि भूमि प्रबंधन मंत्रालय जल्द ही नेपाल का आधिकारिक मानचित्र सार्वजनिक करेगा। उन्होंने सोमवार को ट्विटर पर कहा, “मंत्री परिषद ने नेपाल के सात प्रांतों, 77 जिलों और लिमपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी समेत 753 स्थानीय स्तर के प्रशासनिक संभागों में नेपाल का मानचित्र प्रकाशित किया जाने का फैसला लिया है।”
गयावली ने भारतीय राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को पिछले हफ्ते तलब किया था और उत्तराखंड में धारचुला के साथ लिपुलेख को जोड़ने वाले प्रमुख मार्ग के निर्माण के खिलाफ विरोध जताने के लिए कूटनीतिक नोट सौंपा था। भारत ने कहा था कि उत्तराखंड के पिथौड़ागढ़ जिले में हाल में उद्घाटित सड़क मार्ग पूरी तरह उसकी सीमा के भीतर आता है।
नेपाल के वित्त मंत्री एवं सरकार के प्रवक्ता युवराज खाटीवाड़ा ने सोमवार को कहा कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने देश के नये राजनीतिक मानचित्र क स्वीकृत किया है। संस्कृति, पर्यटन एवं नागर विमानन मंत्री योगेश भट्टाराय ने कहा कि कैबिनेट के फैसला स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की स्थायी समिति के सदस्य गणेश शाह ने कहा कि यह नया कदम नेपाल और भारत के बीच ऐसे समय में अनावश्यक तनाव पैदा करेगा जब देश कोरोना वायरस से लड़ रहा है।