नई दिल्ली। ट्रेनों में कामगारों को हुई परेशानी पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने केंद्रीय गृह सचिव के अलावा रेलवे, गुजरात एवं बिहार सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है। आयोग ने कहा है, ‘ट्रेन में सवार गरीब कामगारों के जीवन की रक्षा करने में सरकार विफल रही।’ आयोग ने मीडिया में आई खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया है। आयोग ने गुजरात एवं बिहार के मुख्य सचिवों, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन और केंद्रीय गृह सचिव से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है। दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को यह बताने के लिए कहा है कि ट्रेन में सवार हुए प्रवासी कामगारों के लिए चिकित्सकीय सहायता समेत अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए क्या कदम उठाए गए।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी लॉकडाउन के दौरान घर जाने के लिए संघर्ष करते रास्ते में फंसे मजदूरों को राहत देने वाला आदेश दिया है। कोर्ट ने सभी राज्यों को आदेश दिया है कि घर जाते मजदूरों से बस या ट्रेन का किराया नहीं लिया जाए। उन्हें भोजन पानी दिया जाए। यह भी कहा है कि राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए वहीं पर सहायता डेस्क लगाकर उनका पंजीकरण करें जहां वे फंसे हुए हैं और उन्हें ट्रेन और बस पर चढ़ने की पूरी जानकारी दें। सूचना का प्रचार किया जाए, ताकि मजदूरों को उसका पता चल सके। जो लोग सड़क पर पैदल जा रहे हैं, उन्हें तत्काल आश्रय केंद्रों में लाकर उनकी मदद की जाए। कोर्ट मामले पर शुक्रवार को फिर सुनवाई करेगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एमआर शाह की पीठ ने मजदूरों की दयनीय दशा पर स्वत: संज्ञान लेकर दिया। कोर्ट ने सभी राज्यों को शुक्रवार तक जवाब दाखिल कर प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी देने को कहा है। दो घंटे से ज्यादा चली सुनवाई में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि केंद्र और राज्य सरकारें दिन-रात मिलकर समन्वय के साथ प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए काम कर रही हैं।