किसानों से 1 रुपये किलो के रेट पर खरीदा गया प्याज 5 महीने में ही 80 रुपये कैसे हो गया?

पत्रकार संजय कुमार प्रजापति की रिपोर्ट

नई दिल्ली. क्या आप किसी ऐसे बिजनेस (Business) को जानते हैं जिसमें एक रुपये इन्वेस्ट करने पर महज पांच महीने में 80 रुपये का रिटर्न मिला हो? नहीं जानते हैं तो हम बताते हैं. इस वक्त आप जिस प्याज (Onion) को 70-80 रुपये प्रति किलो के रेट पर खरीद रहे हैं उसका दाम पांच महीने पहले 19 मई को महज 1 रुपये किलो था. तेलंगाना में तो उससे भी कम मात्र 59 पैसे रेट था. जब किसान अपनी उपज बेच रहे थे तो मार्केट में दाम नहीं था. अब व्यापारी बेच रहे हैं तो दाम आसमान पर है. आखिर हर साल यह चमत्कार कैसे होता है? इसके पीछे आखिर कौन लोग जिम्मेदार हैं? किसानों के हक और जनता की जेब पर डाका कौन डाल रहा है?

दरअसल, महंगाई बढ़ाने में टमाटर, प्याज, आलू (TOP-Tomato, Onion, Potato) का बड़ा योगदान होता है. ये ‘टॉप’ का इतना बड़ा रैकेट है कि वो कभी भी दाम बढ़ा देता है और आप सोचते हैं कि इसका जिम्मेदार किसान है. महंगाई बढ़ाने के लिए किसान कभी जिम्मेदार नहीं होता. दाम तो वो चढ़ाते-उतारते हैं जिनके पास मोटा पैसा और बड़े-बड़े गोदाम हैं. इसीलिए नौकरशाह और कुछ नेता किसानों की उपज के लिए भंडारण का पर्याप्त इंतजाम नहीं होने देते.

राष्ट्रीय किसान संघ के फाउंडर मेंबर बीके आनंद कहते हैं कि किसानों (farmers) को सब्जियों का जो पैसा मिलता है और उसमें और उपभोक्ताओं को मिलने वाले रेट में पांच से आठ गुना का अंतर होता है. प्याज का दाम बढ़ने (Onion price hike) का सिलसिला हम हर साल देखते ही हैं. इसीलिए व्यापारी समृद्ध हैं और किसान बेहाल. पैसा तो बिचौलिए और जमाखोर ही कमाते हैं. कोई भी सरकार इन पर रोक नहीं लगा पाई है.

दरअसल, दाम बढ़ाने वाले ऐसे लोग होते हैं जिन्हें व्यवस्था का संरक्षण हासिल होता है. इसलिए कोई उन पर कार्रवाई नहीं कर सकता. अगर शहर में आपको कोई कृषि उत्पाद (agricultural commodities) महंगा मिल रहा है तो इसका मतलब यह कतई नहीं है कि किसान कमाई कर रहा है. बल्कि इसका मतलब यह है कि भंडारण और सप्लाई चेन की गड़बड़ियों की वजह से बिचौलिया बेहिसाब मुनाफा कमा रहा है.

पांच महीने पहले अलग-अलग मंडियों में दाम

-तेलंगाना की सदाशिवपेट मंडी में 19 मई को प्याज का न्यूनतम रेट 59 पैसे प्रति किलो था.

-महाराष्ट्र की लोणंद मंडी में 19 मई को इसका न्यूनतम रेट 1 रुपये और अधिकतम 6.51 पैसे किलो था.
-महाराष्ट्र की धुले मंडी में 5 मई को लाल प्याज का न्यूनतम दाम 150 रुपये क्विंटल था.

-महाराष्ट्र की धुले मंडी में ही 9 और 13 मई को प्याज 100 रुपये प्रति क्विंटल यानी 1 रुपये किलो बिका.

-महाराष्ट्र की नासिक मंडी में 12 मई को प्याज का न्यूनतम दाम 350 और 14 मई को 351 रुपये प्रति क्विंटल था.

कैसे बढ़ जाता है दाम
देश में सबसे ज्यादा प्याज का उत्पादन महाराष्ट्र में होता है. यह ऐसी फसल है जिसकी जमकर जमाखोरी होती है. प्याज के व्यापारी किसानों से अधिकतम 10-12 रुपये किलो के रेट पर पूरे खेत का सौदा कर लेते हैं. वो कई बार किसान को ही रखरखाव की भी जिम्मेदारी दे देते हैं. इसके बाद नासिक से लेकर दिल्ली तक छोटे-छोटे शहरों में इसकी जमाखोरी (Hoarding) करके दाम बढ़वा देते हैं.

किसान को फसल तैयार होते ही बेचने पड़ जाती है. क्योंकि जिस कर्ज को लेकर उसने फसल उगाई होती है उसे वापस देने की चिंता रहती है. इसलिए मांग और आपूर्ति में अंतर का असली फायदा व्यापारी उठाते हैं.

बारिश को मत दीजिए दोष क्योंकि…
कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना है कि प्याज की महंगाई के लिए बारिश को ब्लेम करना कुछ लोगों का रूटीन बन गया है. महाराष्ट्र की लासलगांव मंडी में प्याज की आवक सितंबर के महीने में 38 फीसदी ज्यादा थी. पूरे महाराष्ट्र में यह करीब 57 फीसदी ज्यादा थी. इसके बाद भी दाम बढ़ने का कोई मतलब नहीं है. दरअसल, प्याज का दाम कालाबाजारी से बढ़ता है. इसका बड़ा रैकेट हर साल इन दिनों प्याज का दाम बारिश का बहाना लेकर बढ़ा देता है. सालों से यही पैटर्न चल रहा है.

दूसरी वजह यह है कि सरकार ने खुद ही एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में संशोधन करके कालाबाजारी करने वालों को कानूनी अधिकार दे दिया है. ऐेसे में दाम नहीं बढ़ेगा तो क्या होगा. जब दाम आसमान पर पहुंच गया तब सरकार ने आखिरकार प्याज रखने की लिमिट (Onion Stock Limit) तय की. यह काम पहले से ही होना चाहिए. ट्रेड को रेगुलेट करना जरूरी है. यही हाल आलू का है. गोदाम भरे हैं और दाम बढ़ रहा है.

सरकार ने क्या किया?
प्याज की कीमतों को कंट्रोल में रखने के लिए केंद्र सरकार ने खुदरा और थोक व्यापारियों पर 31 दिसंबर तक के लिए स्टॉक सीमा लागू की है. खुदरा व्यापारी केवल दो टन तक प्याज का स्टॉक रख सकते हैं, जबकि थोक व्यापारियों को 25 टन तक रखने की अनुमति है.

भारत में प्याज उत्पादन
भारत में प्याज का कुल उत्पादन 2 करोड़ 25 लाख से 2 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन सालाना के बीच है. देश में हर साल कम से कम 1.5 करोड़ मीट्रिक टन प्याज बेची जाती है. करीब 10 से 20 लाख मीट्रिक टन प्याज स्टोरेज के दौरान खराब हो जाती है. 2019 में तो 32 हजार मिट्रिक टन प्याज सड़ गई थी. औसतन 35 लाख मीट्रिक टन प्याज एक्सपोर्ट की जाती है.

नेशनल हर्टिकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट फाउंडेशन (NHRDF) के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में 2 करोड़, 28 लाख, 19 हजार मीट्रिक टन प्याज पैदा हुई. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, गुजरात और राजस्थान इसके बड़े उत्पादक प्रदेश हैं.