पं लक्ष्मी नारायण मिश्र के नाम हो आजमगढ़ विश्वविद्यालय : डा प्रवेश सिंह



आजमगढ़। आजमगढ़ की जमीं पर यूं तो कई कलमकारों ने जन्म लिया और जिन्होंने अपनी लेखनी व कविताओं द्वारा हिन्दी साहित्यजगत में अपनी एक अलग छाप छोड़ी लेकिन इस फेहरिस्त में ज्वंलत मुद्दों पर बेबाकी से आम जनमानस को झकझोर देने वाले प्रसिद्ध नाट्ककार पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र का विशिष्ठ स्थान है। जिन्होंने महज न सिर्फ अपने जनपद के नाम को विश्व पटल पर स्थापित किया बल्कि नाट्ककार के रूप में हिन्दी साहित्य को अद्वितीय उर्वरक कर दिया। श्री मिश्र द्वारा लिखित नाटक अनेक देशों में पढ़ायी जाती है और इनके नाटकों की बारीकियों को आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी तक में खंगाला जा रहा है इसलिए कहा जाता है कि पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र के समस्यापरक नाटक के बगैर साहित्य का यह भाग शून्य सा लगता है लेकिन ऐसे अद्वितीय नाट्ककार को अपने गृह जनपद में उनकी याद में कोई विशेष स्मृति का न होना साहित्यप्रेमियों के मायूसी और नये सृजन की कमी को इंगित कर रहा हैं जो किसी दुर्भाग्य से कम नही है। हां, नगर पालिका स्थित छोटे से पार्क में प्रतिमा स्थापित करके उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर चंद मिनट का नमन कार्यक्रम का आयोजन होना ही इस साहित्य के पुजारी को अपने गृह जनपद में उपेक्षित रखने के ही समान प्रतीत हो रहा है। इसी को लेकर आजमगढ़ में नवनिर्मित होने वाले राज्य विश्वविद्यालय को पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र के स्मृतिशेष के रूप में स्थापित करने की मांग उठने लगी हैं ताकि उनकी तरह ही विश्वविद्यालय भी कालजयी और पूरे विश्व में नई इबारत गढ़ सकें।
साहित्य जगत के इस धरोधर को उचित मुकाम दिलाने के लिए महाविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष व साहित्यप्रेमी डा प्रवेश सिंह आगे आये हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से मांग किया है कि हिन्दी साहित्यजगत को आजमगढ़ के कलमकारों ने इतना उर्वरक बनाया है, जिसके बगैर हिन्दी साहित्य अधूरा सा है, जनपद में साहित्य को फिर से एक नई मुकाम दिलाने की आवश्यकता हैं। साहित्य के पुजारियों का आज तक अपमान हुआ है उसकी भरपाई के लिए आजमगढ़ विश्वविद्यालय को पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करना लम्बे समय से चली आ रही उदासीनता पर निश्चित रूप से एक सकारात्मक कदम होगा। जिससे आजमगढ़ अपने मूल धरोधर में पुनः वापसी करने को रेखाकिंत होगा और भावी पीढ़ियों को नये सिरे से आत्मबल प्रदान करने का काम करेगा ताकि खड़ी बोली को पहचान दिलाने वाले महाकवि अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, राहुल सांकृत्यायन, शिब्ली नोमानी, कैफी आजमी, चन्द्रबली पांडेय आदि जैसे नामचीन साहित्यिक पौध एक बार फिर से तैयार होनी शुरू हो सकेगी। जो हिन्दी साहित्य के सागर को अपनी छाया-काया से गहरा आसमानी रंग देने का काम करेगा। डा प्रवेश सिंह ने यह भी कहा कि आजमगढ़ के साहित्यकारों, कलमकारों, कवियों के योगदान को फिर से याद करने की जरूरत है इसके लिए आजमगढ़ में शिक्षा के महागुरूकुल के रूप में स्थापित होने वाले आजमगढ़ राज्य विश्वविद्यालय को पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र के नाम पर करके साहित्य जगत को चंदन लगाने की जरूरत है ताकि इस चंदन से आजमगढ़ विश्वविद्यालय पूरे विश्व में एक बार में ही प्रसिद्धी प्राप्त कर सकेगा। डा प्रवेश सिंह ने पंडित मिश्र के शब्दों को इन पंक्तियों से आगे बढ़ाया कि ऐसी वैसी बातों से अच्छा है, तू खामोश रहो या फिर ऐसी बात करो जो खामोशी से अच्छी हो, को दोहराते हुए आमजनमानस व सभी संगठनों से अपील किया कि आजमगढ़ विश्वविद्यालय को पंडित लक्ष्मीनारायण के नाम से करने के लिए सोशल मीडिया सहित मीडिया में आवाज उठाये ताकि भारतीय साहित्य को स्मृतिशेष की सलामी के साथ-साथ विश्वपटल पर आजमगढ़ विश्वविद्यालय को नई धुरी और क्षितिज देने का नायाब सुनहरा काम सफल हो सकें। डा प्रवेश सिंह ने आगे कहा कि इस मांग के लिए महाविद्यालय शिक्षक संघ व सहयोगी संगठन व्यापक स्तर पर योजना बनाकर आवाज उठायेगा और साहित्य जगत के इस महारथी को उनको उचित पुष्पाजंलि अर्पित करके एक कालजयी विश्वविद्यालय की स्थापना कराने का प्रयास करेगा।