जनपद में 50 कृषको पर पराली जलाने के मामले में मुकदमा दर्ज कर 36 कृषको से अर्थदण्ड की वसूली

आजमगढ़ 23 नवंबर– प्रभारी उप क़ृषि निदेशक डॉ0 उमेश कुमार गुप्ता ने बताया है कि फसल अवशेष जलाये जाने का दूष्प्रभाव वायु प्रदूषण के रूप में धूप-कोहरा (स्मॉग) की मात्रा में वृद्धि होना है, जिससे न स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है बल्कि कतिपय स्थानों पर अग्नि काण्ड जैसे भयानक घटनाएँ भी घटित हो रही है। जनपद आजमगढ मे फसल अवशेष/पराली जलाने की कुल 55 घटनाये प्रकाश मे आयी है। प्राप्त सूचना के आधार पर सत्यापन कराते हुए मा0 एन0जी0टी0 द्वारा निर्धारित प्राविधानो के अनुसार कुल 50 कृषको के विरूद्ध प्राथ्मिकी दर्ज कराते हुए 36 कृषको से अर्थदण्ड की वसूली कर ली गयी है, एवं शेष के विरूद्ध कार्यवाही क्रमिक है। दिनांक 21-11-2020 को फसल अवशेष जलाये जाने के आरोप मे राजाराम, श्याम नरायण, देवनारायण, शिव नारायण पु़त्रगण विपत ग्राम सरावॉ एवं 6 अन्य के विरूद्ध थाना बरदह, जगदीश सिंह पुत्र राम किशुन, रमाकान्त पुत्र दीनानाथ, रणधीर पुत्र सत्य नारायण, जयंत पुत्र वंश बहादुर निवासीगण ओझैली के विरूद्ध थाना मुबारकपुर एवं इलियास पुत्र-अलीजंग, सर्फुद्दीन पुत्र-गुलाम, मुहम्मद अजमल पुत्र-गुलाम हुसैन, मुबारक अली, मुहम्मद हनीफ, किस्मतुलनिशा पुत्रगण-कासिम सहरूननिशा पत्नी-मुहम्मद सिद्दीक के विरूद्ध थाना-देवगॉव तथा कन्तू पुत्र-सुधिराम, निहुरी पुत्र-ठन्नू, महेश पुत्र-रघुबर के विरूद्ध थाना-जहानागज एवं जगदीश पुत्र-रामकिशुन, रमाकान्त पुत्र-दीनानाथ, रणधीर पुत्र-सत्यनारायन, जयन्त पुत्र-वंश बहादुर के विरूद्ध थाना-सठियॉव, सुल्तान पुत्र-मुर्तजा, सउद पुत्र-फखरूल ग्राम-कोटिला के विरूद्ध थाना-रानी की सराय में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है। इनक कृषकों से नियमानुसार क्षेत्रफल के आधार पर अर्थदण्ड की वसूली भी की जायेगी।
फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु बायो डीकम्पोजर एक प्रकार का सूक्ष्म जीव फफूद है, जिसका उपयोग सभी प्रकार के कृषि अवशेषों में उपयुक्त नमी देकर उनको कम से कम समय में सड़ाकर कार्बनिक खाद तैयार की जा सकती है।
1- खेत में सीधा प्रयोग-विधि :- 20 ग्राम बायो डीकम्पोजर को 200 लीटर पानी के घोल में डालकर उसमें 02-03 किलोग्राम गुड़ डाल लेते हैं। घोल को ढ़क्कन से ढ़क देते हैं और 02 दिन तक घोल को किसी लम्बे डण्डे की सहायता से 02-03 बार चलाते हैं। इस घोल को उसी प्रकार 06-07 दिन छोड़ देते हैं तो घोल की सतह पर हरे व भूरे रंग का फंगस दिखाई देने लगता है। इस घोल को सातवें दिन अच्छी प्रकार मिलाकर सिचाई से पूर्व 01 एकड़ फसल अवशेष/पराली पर छिड़काव कर देते हैं।
2- गोबर कम्पोस्ट गड्ढे में प्रयोग :- उपरोक्त विधि से तैयार घोल को घूर गड्ढ़े में 15-30 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करने से 50 दिन में उच्च कोटि की कार्बनिक खाद तैयार हो जाती है।
कृषक हित मे कृषि विभाग आजमगढ द्वारा जनपद के विभिन्न विकासखण्डो मे वेस्ट डी-कम्पोजर के माध्यम से फसल अवशेष को खेत मे सडाकर खाद बनाने का 1000 एकड मे प्रदर्शन कराये जाने का लक्ष्य निर्धारित है। इच्छुक कृषक बन्धुओ से अनुरोध है कि अपने कार्यक्षेत्र के कृषि विभाग के कार्मिक/सहायक विकास अधिकारी (कृषि) से सम्पर्क कर इसका निःशुल्क लाभ उठा सकते है।