आजमगढ़। लोक आस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ सोमवार से शुरू हो गया है. पर्व की तैयारी भी अंतिम चरण में पहुंच गयी है. घाट की सफाई के साथ प्रसाद बनाने के लिए गेहूं चुनने और सुखाने का काम भी शुरू हो गया है. व्रतियों के घर से घाट तक उत्सवी माहौल है. बाजारों में रौनक बढ़ गयी है. व्रत को लेकर खूब खरीदारी की जा रही है. गली-मोहल्लों में छठी मइया के गीत गूंजने लगे हैं. माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो उठा है. सोमवार को नहाय-खाय के दिन व्रती कद्दू-भात का प्रसाद बनाकर ग्रहण करते हैं. रविवार को 60 रुपये से लेकर सौ रुपये तक कद्दू बाजार में बिके गए। गली-मुहल्लों, चौक-चौराहों और थोक के साथ खुदरा मंडियों में अलग-अलग रेट देखने को मिला।
6.34 बजे
उदय कालीन अर्घ्य
खरना का समय
सायं 5.45 से 6.25 बजे
सायं कालीन अर्घ्य
4.30 से 5.26 बजे
छठ पूजा सामग्री
- प्रसाद के लिए बांस की दो टोकरियां
- बांस या फिर पीतल का सूप
- दूध-जल के लिए एक ग्लास, एक लोटा और थाली
- 5 गन्ने, शकरकंदी और सुथनी
- पान, सुपारी, हल्दी, बड़ा मीठा नींबू
- मूली और अदरक का हरा पौधा
- शरीफा, केला और नाशपाती
- पानी वाला नारियल
- मिठाई, गुड़, गेहूं, चावल और आटे से बना ठेकुआ
- चावल, सिंदूर, दीपक, शहद व धूप
- नए वस्त्रत्त् जैसे सूट या साड़ी
प्रकृति की आराधना-उपासना का महापर्व छठ बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और झारखंड में मनाया जाने वाला लोक आस्था का त्योहार है. इस पर्व को मनाने के पीछे जो दर्शन है, वह विश्वव्यापी है. शायद यही कारण है कि आज इस पर्व के प्रति न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी लोगों में आस्था देखी जा रही है. छठ पर्यावरण संरक्षण, रोग-निवारण व अनुशासन का पर्व है. इसका उल्लेख आदिग्रंथ ऋग्वेद में भी मिलता है. छठ पूजा में सूर्य की उपासना की जाती है. साथ ही, कठिन व्रत व नियमों का पालन किया जाता है. इस तरह यह प्रकृति पूजा के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक और लोकाचार में अनुशासन का भी पर्व है। दीपावली पर लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, तो छठ पर नदी-तालाब, पोखरा आदि जलाशयों की सफाई करते हैं। दीपावली के अगले दिन से ही लोग इस कार्य में जुट जाते हैं, क्योंकि बरसात के बाद जलाशयों और उसके आसपास कीड़े-मकोड़े अपना डेरा जमा लेते हैं, जिसके कारण बीमारियां फैलती हैं.