वर्ल्ड म्यू‌जिक डे:जयपुर में म्यूजिक थेरेपी से कोमा से बाहर आ गया था बच्चा

आज वर्ल्ड म्यूजिक डे है। कोरोना की दूसरी लहर में हमने जिंदगी में म्यूजिक की अहमियत को और करीब से जाना है। ऐसे कई वीडियोज सामने आए जब कोरोना मरीजों में जीने की इच्छा जगाने के लिए म्यूजिक और डांस का सहारा लिया गया। इसीलिए वर्ल्ड म्यूजिक डे पर हम म्यूजिक थेरेपी की बात कर रहे हैं।
पहले इन तीन मामलों को जानिए-

कोरोना की दूसरी लहर यानी अप्रैल-मई में उदयपुर के रवींद्र नाथ मेडिकल कॉलेज के कोरोना वार्ड में डेढ़ सौ से ज्यादा गंभीर मरीज एडमिट थे। हर तरफ उदासी छाई रहती थी। मरीज तनाव में दिखते थे। तब डॉक्टरों ने ‘म्यूजिक थेरेपी’ की पहल की। इससे मरीजों को अच्छी नींद आने लगी और उनके ब्लड प्रेशर यानी BP में भी सुधार आया।

जयपुर के अस्पताल में ढाई साल का कपिल डेढ़ महीने से कोमा में था। डॉक्टरों ने अपने प्रयास कर के देख लिए थे, तब बच्चे को देख रहे सीनियर डॉक्टर अशोक गुप्ता ने म्यूजिक थेरेपी का आइडिया दिया। इसमें बच्चे के मां-बाप की आवाज में कुछ गीत या बातें सुनाई जाती थीं। एक सप्ताह में ही मासूम कोमा से बाहर आ गया था।

गुजरात के राजकोट के तुलसीदास की 15 अप्रैल को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। जांच करने पर पता चला कि उनके फेफड़ों में 50% इंफेक्शन हो गया है। इलाज के दौरान वे एक बार बेहोश हो गए थे और इस दौरान उनकी याददाश्त चली गई थी। तब बेटी भावनाबेन ने म्यूजिक थेरेपी का सहारा लिया और उन्हें मोबाइल पर मोहम्मद रफी के गाने सुनाए। कुछ दिनों बाद भावनाबेन ने उनसे पूछा कि यह गीत आपको याद है तो तुलसीदास वही गाना गाते हुए अपने होंठ हिलाने लगे और ठीक हो गए।

ऐसा क्यों होता है?

डॉक्‍टर सूर्यकांत ओझा कहते हैं, ‘इंसानी दिमाग के दो हिस्से होते हैं, लेफ्ट ब्रेन और दूसरा राइट ब्रेन। लेफ्ट ब्रेन एनॉथिस्टिकल होता है, राइट ब्रेन को म्यूजिकल या इंस्टूमेंट ब्रेन भी कहते हैं। दिमाग का यह हिस्सा संगीत के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। देखा गया है कि तनाव की स्थिति में यदि इस हिस्से पर संगीत की तरंगें पास करें, तो सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।’

लेबर रूम में भी हो चुका है ट्रायल

राजस्‍थान के पाली के बांगड़ अस्पताल के लेबर रूम में प्रसूताओं की प्रसव पीड़ा को कम करने के लिए वर्ष 2019 में म्यूजिक थेरेपी का ट्रायल किया गया था। सफल होने के बाद इसे लागू भी किया गया। लेबर रूम के प्रभारी डॉ. बाल गोपाल सिंह भाटी ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान संगीत थेरेपी महिला और बच्चे दोनों के लिए बेहतर होती है।

म्यूजिक थेरेपी पर लखनऊ की केजीएमयू के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. राजेश वर्मा ने बताया कि म्यूजिकल थेरेपी ब्रेन डिसऑर्डर जैसे अल्जाइमर और डिमेंशिया रोगों को दूर करने में काफी कारगर है। म्यूजिकल थेरेपी से लैंग्वेज डिसऑर्डर की भी समस्या दूर हो जाती है। इंडिया में इस पर काफी रिचर्स भी की गई है। आमतौर पर ये थेरेपी हायर मेंटल फंक्शन को इम्प्रूव करती है।

खासतौर पर दो रोगों में कारगर है म्यूजिक थेरेपी

  1. हृदय रोगः इस रोग में राग दरबारी और राग सारंग पर आधारित संगीत सुनना फायदेमंद होता है। इससे जुड़े हुए फिल्मी गाने कुछ इस तरह हैं।

दिल की बीमारी में उपयोगी गाने

तोरा मन दर्पण कहलाए, फिल्म- काजल
राधिके तूने बंसरी चुराई, फिल्म- बेटी बेटे
झनक झनक तोरी बाजे पायलिया, फिल्म- मेरे हुज़ूर
बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम, फिल्म- साजन
जादूगर सइयां, छोड़ मोरी, फिल्म- फाल्गुन
ओ दुनिया के रखवाले, फिल्म- बैजू बावरा
मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये, फिल्म- मुगले आजम

  1. अनिद्रा: आजकल की दौड़ती-भागती जिंदगी में लोगों को सबसे ज्यादा समस्या नींद ना आने की होती है। ऑफिस में देर रात तक काम करने की वजह से सोने की सारी टाइमिंग बिगड़ जाती है। ऐसे में राग भैरवी और राग सोहनी सुनना अच्छा रहता है। नींद लाने के लिए आप इन फिल्मी गानों को सुन सकते हैं।

अनिद्रा में फायदेमंद बॉलीवुड के गाने

रात भर उनकी याद आती रही, फिल्म- गमन
नाचे मन मोरा, फिल्म- कोहिनूर
मीठे बोल बोले बोले पायलिया, फिल्म- सितारा
तू गंगा की मौज मैं यमुना, फिल्म- बैजू बावरा
ऋतु बसंत आई पवन, फिल्म- झनक-झनक पायल बाजे पायलिया
सांवरे सांवरे, फिल्म- अनुराधा
चिंगारी कोई भड़के, फिल्म- अमर प्रेम
छम छम बाजे रे पायलिया, फिल्म- घूंघट
झूमती चली हवा, फिल्म- संगीत सम्राट तानसेन
इसके अलावा सबसे ऊपर तस्वीर में अलग-अलग रोगों में कौन से राग पर आधारित संगीत सुनना चाहिए, ये बताया गया है।
ज्यादा दूध के लिए गायों को दी जाती है म्यूजिक थेरेपी
गौशाला में बीमार गायों को राहत देने और दुधारू गायों के दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए म्यूजिक थेरेपी का सहारा लिया गया था। एक गौशाला में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी की धुन और पंडित जसराज के भजनों की गूंज सुनाई गई। संगीत का यह प्रयोग सूर्योदय और सूर्यास्त (गोधुलि बेला) के वक्त सुनाया जाता है।
वेदों में भी बताया गया संगीत को बीमारी में राहत का माध्यम
संसार के सबसे प्राचीन वेद सामवेद में भी म्यूजिक थेरेपी का जिक्र है। उस समय ‘स्वर’ को ‘यम’ कहते थे। आयुर्वेद में भी इसका उल्लेख है। यह बीमारी का इलाज नहीं है, बल्कि उस बीमारी की अवस्था में राहत देने के लिए बेहतर साबित होती थी। इसमें प्रत्येक बीमारी का विश्लेषण कर उसके अनुसार थेरेपी दी जाती है।
विदेशों में कई साल से दी जा रही है म्यूजिक थेरेपी
चिकित्सा विभाग द्वारा शुरू की गई म्यूजिक थेरेपी की पहल वैसे अमेरिका, यूरोप व जर्मनी जैसे देशों में कई साल से दी जा रही है। वहां डॉक्टर्स की टीम के साथ अलग से म्यूजिक थेरेपिस्ट भी रहता है। वैसे हमारे देश में भी अब इसे धीरे-धीरे मुख्य धारा में लाया जा रहा है। दिल्ली सरकार ने जनवरी 2019 में हैप्पीनेस थेरेपी के नाम से इसकी शुरुआत की थी, इससे पूर्व वहां के स्कूलों में भी इसे लागू किया गया था।